Book Title: Jaina Granth Bhandars in Rajasthan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 327
________________ 310 1 Jaina Grantha Bhandars in Rajasthan गुल सतरि परिचा सातउ वसहि सुर्दार नारि । चौडी चौव दाहो होय इमी चीत लाय सवारि ॥ मृग नयन वयन कोकिल सरस केहर लकी कामिनी । अधर लाल हीरा दमन, मोह धन गज गामिनि ||२६| पदमावति के गुन सुने चढी चुप चोतलाय । विन देख्या पदमावति जनम इक्यारथ जाय ||३०|| The manuscript of the work was witten in the year 1830 A. D. by Sewaka Jogidasa on the request of Sravaka Rama Narain. The beginning and end of the work are as follows: खड मभार । राजान । श्री गणेशायनमः । अथ गौरा बादल की कथा लिख्यते ।। चरण कमल चित लायके, समरु सारद माय । करि कथा बनाय कैरि, प्ररणमु सद्गुरु पाय || १ || जंबु दीप दीपा मिरे, मरथ नगर बढौ चित्तोड है, माठ कोस विसतार ||२|| राज करें रानो तिहां रतनसेन मव नकोसी कुना करें, अगडी मरद चौहाण || ३ | नगर बst चित्तोड है, गढनी पर ही बक । नाहि नाम तिहां साह को करें जु राज निसक ||४|| + + -+सवत सौलासे प्रमीये समै, फागुन पुन्य मास । वीरा र संगार रस, कहीयो जटमल सबै ताहि मडोल अवचल सुखी सब लाय । उछाह मानद होत घर घर दुखी नाहित कोय ।। २१२ ।। जिहा राज राजे अलीखान गाजी खानन सरनद । निरदार सकल पठारण माही ज्यु नखेत्र मै चद ।। धरमसी को नद जटमल जात नाहर ताम । जिन कही कथा बनाय करि विच सवला मै ठाम ।। २१३ ।। कहता आनद ऊपजै, सुनता प्रानद होय । जो कोइ कहै गुम जना, तो बहु हरषित लोय ॥ २१४ ॥ चालीस सहस घोडा भुवा, दोय सहस सिरदार । एक लाख मुबा प्रादमी, हाथी आठ तास ।।२११।। हजार ।। २१५ ।।

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