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Jaina Grantha Bhandara in Rajasthati
रास मनोहर २ कोषु प्रति चग, होली तणु प्रति दुरधरु भेदाभेद बर्खाण जाणु । ए कथा रस सोमली, मनाहि धर्म विचार प्राणु ॥ एम जारणी निघचु कगे, पालु समकित सार । ब्रह्म जणदास कहिइसु जिम पामु भवपार ।। १४८ ।।
॥ इति होलीरास समाप्त ।।
12. BUDHI PRAKASA :
Budhi Prakāśa was composed by the famous Hindi poet Delha, the father of Thakursi who was also a poet of the 16th Century. The work contains teachings for a lay man. The whole work is completed in 27 stanzas, out of which first fifteen stanzas are not traceable so far. The gutaka No 865 10 which this work has been collected, contains only later half portion of the work. It was copied by Dasaratha Nigotia. From half of the portion of the work only, it appears that it is a fine work and possesses a literary as well as linguistic beauty. The work is a very short one, so the whole portion is given below:
भूखो पंथ न जाह सियालो, जीवा पंथ न जाह उन्हालो । सावणी भादव गाव न जाजे, प्रासौजा मौ भौय न सौजे ।। १६ ।। प्रणर चीतो किम नौहि खाज, अगर पीछाण्या की साथी न जाजे । जाय दिमावरि रातो न सोजे, रोस न कीजे चालत पथी ।। १७ ।। अवधरि न्हाय उतरी जे घाटो, कन्या न वेची गरथ के साट। पहरण प्रायो प्रादर दीजे, पापण सारु भगति करीजे। दान देव लखमी फल लीजे, जुनो ढोर न कपड लीजे ॥ १८ ॥ पढ़ न होय कीसिही बेचाले, वचन घालि तुम जो राले । बीज न कीजे पास पराय, भारभज्यो काम त्यो नीरवाहि ।। १६ ।। नितप्रति दान सदाहि दीजे, दुणा उपरि व्याज न लीजे । धरिही ण राखी हीण कुल नारी, सुक्रत उपाय संतोषा सारी ॥ २० ॥ वीणमै धोयड इंसि हसी साय, वीणसै बहु ज परि घरि जोय । वीणसे पूत पछोकडी छांडी, विरणसो गय गवाडो भीडी ।। २१ ॥ वीणसे विण प्रसबार घोडो, वीणसे सेवा प्राहर मोडो। बीण सौ राजु मंत्री नो थोडो, पजगील न बोल सिकुनै ।। २२ ।। वृद्धि होइ करि सो नर जीवो, मधोम के परी पाणी न पीये।