Book Title: Jaina Granth Bhandars in Rajasthan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 300
________________ Material for Research [ 283 हरिषन कोजे जे बुढ्डो पाणी, प्रणनीपने सुकाल न जारणी ॥ २३ ॥ मत्र न कीजे हीयडो कुडो, सील वीठा नारी ण पहराय कुहो। मंसी सीख सुरणी रौ पुण्या, लाज न कीजे भागत कन्या ।। २४ ।। ब्राह्मण होय सवेद भरणावी, श्रावक होय सप्रण अथवा जीवे । वाणया होय सवणिज करावो, कायथ होई सलेखो भरणावो ।। २५ ॥ कुलमारग जु ण छंडो करमा, सगली सीख सुणेजे घरमा । बुधि-प्रगास पढीर वीचारे, बीरो न पावे कदहि संह सारी ।। २६ ।। जैसी सीख सुर्ण सहु कोय, कहता सुणता पुनी जु होय । कही देल्ह परषोत्तम युता, करौ राज्य परीवार सजूता ।। २७ ।। सवत् १६८६ मिती पौष सुदी १० बुधीप्रगास समाप्ता। लि. पडीढा युढा लीखायत पंडीरासीघं जो ।। 13 NEMINĀTHA RĀSA : This is a work on the life of Lord Neminātha written by Acārya Jinasena in 1494 A. D. in the city of Javacha. There are 93 stanzas in the work. The work is in Rajasthani. The manuscript of Neminātha Råsa is available in the Sastra Bhandar of Badā Mandir Terapanthi, Jaipur. The style of describing the things is very simple. The beginning and the end of the work are as follows. अथ श्री नेमीनाथरास लिख्यते । सारद सामिणि मागू माने, तुझ चलणे चित लागू ध्याने । अविरल प्रक्षर मालुदाने, मुझ मूरख मति माविसानरे । गाउ राजा रलीया मणरे, यादवना कुलमडण साररे । नामि नेमीश्वर जाणिज्योरे, तसु गुण पुहुविन लामि पार रे ।। राजमती वररुयडु रे, नवह भवतर भागीय भूत रे । दशमि दुरपर तपलीउ रे, पाठ कम चउ भी प्राणु अंत रे। मुगति रमणि सुमन कोउ रे, तहु नुनाम जपु जगि सार रे ।। + -- श्रीयगकीरति सूरति सूरीश्वर कहीइ , महीलि महिमा पार न लहीइ । शातरूप वरसि नितवाणी, सरस सकोमल प्रमीयस मापी। तास चलण चितलाई उरे, गाइउ एह प्रपूरब रास रे ॥ जिनसेन युगति करी रे, तेहना वयण तणउवासरे ।।

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