Book Title: Jaina Granth Bhandars in Rajasthan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 301
________________ 284) Jaina Grantha Bhandars in Rajasthan जा लगि जलनिधि तवसी नीरे, जा लगि प्रवल मेरि गिरि धीरे । जागरणसंगरण बदनि सूर, ता लगि रास रहू भर पूरि रे । युगति सहित यादव तर रे, भाव सहित भणसि भरतारि रे । तेहनि पुण्य होसि धरणो रे, पाप तपु करसि परिहार रे ।। चद्रवाण संच्छर कीजि, पचातु पुण्य पासि दोजि । माघ सुदी पंचमी मणीजि, गुरुवारि सिद्ध योग उबी जिरे ॥ जुवा धनुष रज्जरिण जाणीइ के, तीर्थंकर वली कहीइ सार रे ॥ शान्तिनाथ तिहा सोलमुरे, कब्बुरास तेह भवण मभार रे ।। इति श्री नेमिनाथरास प्राचार्य जिनसेन कृत समाप्तः । 14. BĀVANI : Chihal was a famous Rajasthani writer of the 16th Century He completed his Panca Saheli Gita in the year 1518 A. D. Bavani is a newly discovered work of the poet. It contains 54 stanzas which includes several common topics for the interest of every layman. The manuscript of Bavani is preserved in the Sastra Bhandar of Jaina temple Tholia Jaipur. It is in a gutaka in which other works are also included. Bavani is a work of high standard in Hindi. From the language and description it can be placed among high work of Hindi. It was completed in the year 1527 A. D. Some stanzas of the work are as follows -- छाया तरवर पिख्यि श्राइ बहु लसइ विहंगम । जब लगु फल संपन्न रहइ तब लग इक संगम || विह वसि परी प्रपथ पत्तफल जडइ निरंतर । खिर इक तथ रहद्द जाइ उडि दिसहि दिसतर ।। हल कहइ द्रम पfख्य जिम महि मित्रायण दरबलग । पर कज्ज न होइ वल्लहउ प्राप स्वारथ सबल जुग ।। २६ ।। + ++ डरपहि दादुर सब्दि वाह घल्लइ केहरि गलि । डर कुंडई नीरि तिरइ नदि महा अलग जलि ॥ भरइ फुलकइ मारि सीसि घरि परवम टालइ । कुपइ उदरि पिलिय पकरि घरि कुंजर रालइ ॥ सोदरी देखि सकइ सदा बिसहर कउ बलबट ग्रहइ । छील सुकवि जंvs वमरण तिरमा चरित्र न को लहह ||३३|| + + +

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