Book Title: Jaina Granth Bhandars in Rajasthan
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Digambar Jain Atishay Kshetra Mandir

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Page 309
________________ 292 1 Jasna Grantha Bhandars in Relasthan. arious metres The manuscript was discovered in the Sastra Bhandar of Terapanthi Mandir (Badi) Jaipur. It was copied in 1586 A. D. The language of the work is Rajasthāns, but there is some int luence of Gujaräty. The beginning of the work is as follows: प्रों नमो वीतरागाय । भविष्यदत्तनोरास लिख्यते । सकल जिनवर सकल जिनवर चरण वदेवि । सिद्भह सूरीश्वर नमु उवज्झाय सामान्य यतिवर । गणधर चुवीसना जेह अग पूरब श्रुतधर ॥ सार बुद्धि द्यो सारदा प्रगमी चित्त धरैवि । भविष्यदत्त तग भलु राम कह सखेवि ॥१॥ विश्वसेन सूरिवर तरणा, 'प्रणमी चरण पवित्र । विद्याभूषण इम कहि, रच रास सु चरित्र ॥२॥ 1. At the end, the poet gives his complete descripnon, alongwith the date of completion of the work and place where it was composed: काष्ठासघ नदी तट गछ, विद्यागरण विद्यामि स्वछ । गमसेन बस गुरण निला, धर्ममेन होपागुर भला ॥५६।। विमलसेन तम पाटि जाण, विशालकीनि हो आबुध प्रागण । तस पट्टोद्धर' महामुनीश, विश्वमेन सूग्विर जगदीम ॥५७।। मकल शास्त्र तरणु मडार, सर्व दिगंबरनु शृगार । विश्वसेन सूरीश्वर जाण, गछ जेह नी मानि प्राण १५८|| तह तणु दामानुजदाम, सूरि विद्याभूपरण जिनदाम । प्राणि मन माहिउ उल्हाम, रचीयु रास सिरोमरिण रास ॥५६।। महानयर सोजित्रा ठाम, त्यांसु पाण जिन वरनु 'धाम । मट्टपुरा ज्ञाति अभिराम, नित नित करि धर्म ना काम ॥६॥ . संवत सोलसि श्रावण मास, शुक्ल पचमी दिन उल्हास । .. .. 1. { .. ' ' ' कहि विद्याभूसरण सुरीश, रास ए मदु कोहि वरीस ॥६१1 ....'.' .. " .. . इति श्री विद्याभूषण सूरिणा"कृतो ऽयं रासः समाप्त: ।। ' :...' ....... ब्रह्म श्री. रारा जी तत् शिष्य. ब. हीरानन्द जी नो, पोथी. छे ।। । । . .

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