Book Title: Jain Yuga Nirmata
Author(s): Mulchandra Jain
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 13
________________ युग पुरुष-संक्षिप्त परिचय। ऋषभदेव-भोगभूमिके अंतमें आदिनाथ ऋषभदेवका जन्म हुआ. था तब कर्मयुगका प्रारंभ हुआ। कल्पवृक्षोंका अभाव हो जानेपर आपने भोजनकी उचित व्यवस्था की। प्रत्येक व्यक्तिके योग्य मानव कर्तव्यका निरूपण किया। कर्मके अनुसार वर्ण व्यवस्थाकी स्थापना की, साधुमार्गका प्रदर्शन किया और आत्मधर्मकी विवेचना की। आपने केलाश पर्वतसे निर्वाण लाभ लिया। जयकुमार-चक्रवर्ति भरतके मैनापतिक रूपमें आपने म्लेच्छ राजाओंसे सर्व प्रथम युद्ध किया । आपके समयमें स्वयंवर प्रथाका प्रारंभ हुआ। आप स्वयंवरके प्रथम विजेता थे । एकपत्नी व्रतके आदर्शको आपने सर्व प्रथम स्थापित किया और देवताओं द्वारा परीक्षणमें सफल हुए। चक्रवर्ति भरत-भारतके आप आदि चक्रवर्ती समाद थे। आपने सम्पूर्ण भारत और म्लेच्छ खंडोंमें दिग्विजय की थी। आपने ब्राह्मण वर्णकी स्थापना की। आत्मज्ञानके आदर्शको आपने प्रदर्शित किया । दानवीर श्रेयांसकुमार-आपने दान प्रथाका सर्व प्रथम प्रदर्शन किया, चार दानोंकी व्यवस्था की और उनकी विस्तृत विवेचना की। महाबाहु बाहुबलि-आपने स्वाधीनताको रक्षाके लिए अपने भाई चक्रवर्ति भरतसे युद्ध किया और उसमें विजयी हुए। वर्षों तक आप अचल समाधिमें स्थिर रहें ।

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