Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 35
________________ [२६] यहां के राजा ने भी निर्वाणोत्सव मनाया था। श्री महिक्षेत्र जी के दर्शन यात्रियों को कृतज्ञता ज्ञापन और सत्य के पक्षपाती बनने की शिक्षा देते हैं । यहाँ तिखाल वाले बाबा (भ० पार्श्वनाथ) का बड़ा चमत्कार है । लोगवहां मनौती मनानेजाते हैं और उनकी कामनायें पूरी होती हैं। यहां पर कोट के खण्डहरों की खुदाई हई है, जिनमें ईस्वीं प्रथम शताब्दी की जिन प्रतिमायें निकली हैं। यहाँ पर रामनगर गांव में एक विशाल दि० जैन मंदिर है और गांव के अत्यन्त निकट एक विशाल प्राचीन मन्दिर है जिसमें छः वेदियों में भगवान् विराजमान हैं। प्राचीन मूर्तियाँ चमत्कारी और प्रभाव शाली है तथा धर्मशालायें हैं । प्रति वर्ष चैत बदी अष्टमीसे त्रयोदशी तक मेला होता है। और आषाढ़ी अष्टाह्निका पर्व में प्रति वर्ष प्रास-पास के यात्री गण पाकर श्री सिद्धिचक्र विधान करते हैं यह भी एक मेले का लघुरुप बन जाता है। मथुरा रेवती बहोड़ा खेड़ा से अलीगढ़-हाथरस जङ्कशन होते हुए सिद्धक्षेत्र मथुरा आवे। यह महान तीर्थ है। अन्तिम केवली श्री जम्बूस्वामी संघ सहित यहाँ पधारे थे। उनके साथ महामुनि विद्युच्चर और पाँच सौ मुनिगण भी बाहर उद्यान में ध्यान लगाकर बैठे थे। किसी धर्मद्रोही ने उन पर उपसर्ग किया, जिसे समभाव से सहकर वे महामुनि स्वर्ग पधारे। उन मुनिराजों के स्मारक रूप यहां पांच सौ स्तूप बने हुए थे। सम्राट अकबर के समय अलीगढ़ वासी साहटोडर ने उनका जीर्णोद्धार किया था। समय व्यतीत होने पर वे नष्ट हो गए। वहीं पर एक स्तूप भ० पार्श्वनाथ केसमयकाबनाहुप्राथा,जिसे 'देवनिर्मित' कहते थे। श्री सोमदेवसूरि ने उनका उल्लेख अपने 'यशस्तिलकचम्पू' में किया है। प्राजकल चौरासी नामक स्थान पर दि० जनियों का सुदृढ़ मंदिर है जिसे सेठ मनीराम ने बनवाया था। वहां पर 'ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम, 'श्री दि०

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