Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 105
________________ [१०१] शिल्प चातुर्य का कमाल यहाँ कर दिखाया है। मण्डपों से खंभों पर बने हुए चित्र दर्शकों को मुग्ध कर लेते हैं । इसका जीर्णोद्वार हो गया है। पहले यहाँ यात्रा करने राजा महाराजा सब ही लोग आते थे। श्री शांतिनाथ जी की एक प्रतिमा १२ फीट ऊंची अति मनोज्ञ है । हजारों प्रतिमायें खण्डित पड़ी हुई हैं । यहाँ के दर्शन करके वापस सागर आवे । यहाँ से वीना ज० होकर जाखलौन जावे। श्री देवगढ़ अतिशय क्षेत्र मध्य रेलवे की दिल्ली-वम्बई लाईन पर ललितपुर स्टेशन से २० मील दूर देवगढ़ अतिशय क्षेत्र हैं। ग्राम में नदी किनारे धर्मशाला है। वहाँ से पहाड़ एक मील है। पहाड़ के पास एक बावड़ी है, इसमें सामग्री धो लेनी चाहिए। पहाड़ पर एक विशाल कोट के अन्दर अनेक मंदिर और मूर्तियॉहैं। चालीस मन्दिर प्राचीन लाखों रुपयों की लागत के बने हैं और १६ मान स्तम्भ, कहते हैं कि इन मन्दिरों को श्री पाराशाह और उनके दो भाई देवपत और खेवपत ने बनवाया था, परन्तु कुछ मंदिर उनके समय से प्राचीन है श्री शांतिनाथ जी की विशालकाय प्रतिमा दर्शनीय है। यह स्थान उत्तर भारत की जैनबद्री समझना चाहिये यहाँ के मन्दिर मूर्तियॉ-स्तम्भ और शिलापट अपूर्व शिल्पकला के नमूने हैं। यहां पंच परमेष्ठी , देवियों , तीर्थकर की माता आदि की मूर्तियां तो ऐसी हैं जो अन्यत्र नही पाई जाती ! यहां गुप्तकाल की भी मूर्तियाँ है । एक सिद्ध गुफा' नामक गुफा प्राचीन है। यहाँ के मन्दिरों का जीर्णोद्वार होने की बड़ी आवश्यकता है। आगरे के सेठ पदम राज वैनाडा ने बिखरी हुई मूर्तियों को एक दीवार में लगवा कर परिकोट बनवाया था । सन् १९३६ में यहां खुरई के सेठ गणपत लाल गुरहा ने गजराथ चलाया था। वापस जाखलौन होकर ललितपुर जावे।

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