Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 108
________________ [ १०४ ] प्राचीन नाम "तपोवन" है जो अपभ्रंश होकर थोवन बन गया है। यहाँ २५ दिगम्बर जैन मंदिर हैं, सबसे प्राचीन मंदिर पाड़ाशाह का बनवाया है जो सोहलवीं शताब्दी का है। एक मंदिर में भगवान आदिनाथ जी की प्रतिमा लगभग २५ फीट ऊँची है। टीकमगढ़ ललितपुर से मोटर द्वारा टीकमगढ़ जावे। यहां मन्दिरों के दर्शन कर अन्तरातमा को पवित्र करना चाहिए। यहाँ से पपौरा जावे। पपौरा जी . टीकमगढ़ से ३ मील पपौरा जी तीर्थ स्थान है। यहां ८६ विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर हैं। एक मन्दिर में सात गज ऊँची प्रतिमा विराजमान है। सबसे प्राचीन मन्दिर भोहरे का है, जो सं० १२०२ विक्रमाब्द में प्रसिद्ध चंदेलवंशीय राजा मदनवर्मदेव के समय का बना हुआ है। कार्तिक सुदी १४ को हर साल मेला होता है । वापस टीकमगढ़ आवे । अहार जी । - टीकमगढ़ से पूर्व की ओर १२ मील अहार नामक अतिशवक्षेत्र है। इस क्षेत्र के विषय में यह किम्बदन्ती प्रसिद्ध हैं कि पुराने जमाने में पाड़ाशाह नामक धनवान जैनी व्यापारी थे। उन्हें जिनदर्शन करके भोजन करने की प्रतिज्ञा थी। एक दिन वह उस तालाब के पास पहुंचे जहाँ प्राज अहार के मन्दिर हैं। उस स्थान पर उन्होंने डेरे डाले, परन्तु जिनदर्शन न हुये। 'पाडाशाह उपवास करने को तैयार हुये कि इतने में एक मुनिराज का शुभागमन हुप्रा । सेठजी ने भक्तिपूर्वक उनको आहार देकर स्वयं प्राहार किया। इस अतिशयपूर्ण स्मृति को सुरक्षित रखने के लिए और स्थान की रमणीकता को पवित्र बनाने के लिए उन्होंने वहां एक

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