Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 109
________________ [ १०५ ] जिन मंदिर निर्माण कराना निश्चित किया । इत्तफाक से वे ललितपुर से जो रांगा भर कर लाए थे, वह चाँदी हो गया। सेठ जी ने यह चमत्कार देखकर उस सारी चाँदी को यहां जिन मंदिर बनवाने में खर्च कर दिया। तभी से यह क्षेत्र प्रहारजी के नाम से प्रसिद्ध है । वैसे यहां पर दसवीं शताब्दी तक के शिलालेख बताये जाते हैं । मालूम होता हैं कि पाड़ाशाह जी ने पुरातन तीर्थ का जीर्णोद्धार करके इसकी प्रसिद्धी की थी। वर्तमान में यहाँ चार जिनालय अवशेष है। मुख्य जिनालय में १८ फीट ऊँची श्री शांतिनाथ जी की सौम्यमूर्ति विराजमान है । सं० १२३७ मगसिर सुदी ३ शुक्रवार को इस मूर्ति की प्रतिष्ठा गृहपतिवंश के सेठ जाड़ के भाईयों ने कराई थी। उनके पूर्वजों ने वाणपुर में सहस्रकूट जिनालय भी स्थापित किया था, जो अब भी मौजूद हैं। यहां और भी अगणित जिन प्रतिमायें बिखरी हुई मिलती है, जो इस तीर्थ के महत्व को स्थापित करती हैं। · श्री शान्तिनाथ जी की मनोज्ञ मूर्ति के अतिरिक्त यहाँ पर ग्यारह फुट ऊँची खड्गासन प्रतिमा श्री कुन्थुनाथ भगवान की भी विद्यमान है। यहां प्रचुर परिमाण में अनेक प्राचीन शिलालेख उपलब्ध है जिन से जैनधर्म और जैन जातियों का महत्व तथा प्राचीनता प्रकट होती है । प्राचीन जिन मंदिरों की २५० मूर्तियां यहाँ उपलब्ध हैं। यहां विक्रम सं० १६६३ से श्री शान्तिनाथ दिग म्बर जैन विद्यालय मय बोडिंग के चालू है । ललितपुर (मध्य रेलवे) स्टेशन से मोटर द्वारा ३६ मील टीकमगढ़ होकर महार जी पहुंचना चाहिये अथवा मऊरानीपुर स्टेशन से ४२ मील मोटर द्वारा टीकमगढ़ से प्रहार जी पहुंचना चाहिये । श्री अतिशयक्षेत्र कुण्डलपुर दमोह से करीब २० मील ईशानकोण में कुण्डलपुर प्रतिशय

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