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यहां १३ वीं शताब्दी की मूर्तियां पाई जाती हैं, संवत् १२२३, १९५८ और १३८० के मूर्तिलेख वाली प्रतिमाएँ हैं। इससे स्पष्ट हैं कि यह क्षेत्र १३ वी शताब्दी में प्रसिद्ध था। उस समय मन्दिरों का जीर्णोद्धार का कार्य भी हुआ था।
उज्जैन उज्जैन एक ऐतिहासिक स्थान है। पूर्व काल में यह जैनियो का केन्द्र था। उज्जैन प्राचीन अतिशय क्षेत्र है। यहाँ की श्मशान भूमि में अन्तिम तीर्थङ्कर भ० महावीर ने तपस्या की थी-यहीं पर रुद्र ने उन पर घोर उपसर्ग किया था। उपरान्त सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की उप राजधानी भी रहा । श्रुतकेवली भद्रबाहु जी इस भूमि में विचरे थे। और यहीं उन्होंने १२ वर्ष के अकाल की भविष्यवाणी की थी। प्रसिद्ध सम्राट विक्रमादित्य की लीला भूमि भी यही थी। प्राज यहाँ बहुत से प्राचीन खंडहर पड़े हुए हैं। स्टेशन से दो मील दूर नमक मंडी में जन धर्मशाला और मन्दिर हैं । दूसरा मंदिर नयापुरा में है। एक मंदिर रफीगंज में हैं और एक मंदिर जयसिंह पुरा में है। वहां जयसिंहपुरा मंदिर में पं० सत्यन्धरकुमारजी सेठी ने प्राचीन मूर्तियों का अच्छा संग्रह किया है।
आकाशलोचनादिक देखने योग्य स्थान हैं यहां से यात्री को भोपाल ब्रांच लाइन में मकसी स्टेशन जाना चाहिए।
मकसी पार्श्वनाथ स्टेशन के पास ही धर्मशाला है, जहां से एक मील दूर कल्याणपुर नामक ग्राम हैं। यहां दो दि० जैन मंदिर और धर्मशाला हैं जिनमें कई प्रतिमायें मनोज्ञ हैं। बडा जैन मंदिर जो पहले दिगम्बरियों का था, अब उस पर दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों का अधिकार है। सुबह 6 बजे तक दि. जैनी पूजन करते हैं। दर्शन हर वक्त किये जाते हैं। इस मंदिर में मूलनायक श्री