Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 64
________________ [ ६० ] इस मन्दिर के प्राकार के पश्चिमी भाग में 'सिद्धान्तवस्ती' नामक मन्दिर है, जिसमें पहले सिद्धान्त ग्रन्थ रहते थे । बाहर द्वार के पास 'दानशाले वस्ती' है, जिसमें पंचपरमेष्ठी की मूर्ति विराजित हैं । 'नगर जिनालय' बहुत छोटा मन्दिर है, जिसे मंत्री नागदेव ने सन् १९६५ ई० में बनवाया था । 'मंगाई वस्ती' शांतिनाथ स्वामी का मंदिर है । चारुकीति पंडिताचार्य की शिष्या, राजमंदिर की नर्तकी-चूड़ामणि श्रौर बेलुगुलु की रहने वाली मंगाई देवी ने यह मंदिर १३२५ ई० में बनवाया था । धन्य था वह समय जब जैन धर्म राजनर्तकियों के जीवन को पवित्र बना देता था । 'जैनमठ' श्री भट्टारक चारुकीर्ति जी का निवास स्थान है । इसके द्वार मण्डप के स्तम्भों पर कौशल- पूर्ण खुदाई का काम है । मन्दिर में तीन गर्भगृह हैं जिनमें अनेक जिनबिम्ब विराजमान हैं । इसमें 'नवदेवता' की मूर्ति अनूठी है। पंचपरमेष्टियों के प्रतिरिक्त इसमें जैन धर्म को एक वृक्ष के द्वारा सूचित किया है, व्यास पीठ ( चौकी) जिनवाणी का प्रतीक है, चैत्य एक जिनमूर्ति द्वारा और जिन मंदिर एक देवमण्डप द्वारा दर्शाये गये है । सबकी दीवारों पर सुन्दर चित्र बने हुये हैं। पास में ही जैन पाठशाला बालकबालिकाओं के लिए अलग-अलग हैं। इस तीर्थ की मान्यता मैसूर के विगत शासनाधिकारी राजवंश में पुरातन काल से हैं। मस्तकाभिषेक के समय सबसे पहले श्रीमान् महाराजा सा० मैसूर ही कलशाभिषेक करते हैं । जैनधर्म का गौरव श्रवणबेलगोल के प्रत्येक कीर्ति स्थान से प्रकट होता है। प्रत्येक जैनी को यहां के दर्शन करना चाहिए। यहां से लारी वालों से किराया तै कर इस श्रोर के अन्य तीर्थो की यात्रा करनी चाहिए, मार्ग में मैसूर से रंगापट्टम, वैर आदि स्थानों को दिखलाते हुए ले जाते हैं।

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