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[७२] दर्शन-पूजा करके आन्नद आता है। क्या ही अच्छा हो, यदि यहां पर नियमित रूप से पूजन-प्रक्षाल हुमा करे।
मांगीतुगी मनमाड़ और नासिक स्टेशनों से ३० मील दूर मांगीतुगी सिद्धक्षेत्र है, जहां मोटर-लारी में जाया जाता है। श्री रामचन्द्रजी, हनुमान जी, सुग्रीव, गवय-गवाक्ष, नील-महानील आदि ६९ करोड़ मुनिजन यहाँ से मुक्त हुए है। यह स्थान जंगल में बड़ा रमणीक है। चारों तरफ फैली हुई पर्वतमालाओं के बीच में मांगी और तुगी पर्वत निराली शान के खड़े हुए हैं। पर्वत की चोटियाँ लिंगाकार दूर से दिखाई पड़ती है। उन लिंगाकार चोटियों के चारों तरफ गुफा मन्दिर बने हुए हैं। तलैटी में दो प्राचीन मंदिर हैं । हाल में एक मानस्तम्भ भी दर्शनीय बना है। ठहरने के लिए धर्मशालायें हैं। मांगी पहाड़ की चौड़ाई तीन मील है। यद्यपि चढ़ाई कठिन है, परन्तु सावधानी रखने से खलती नहीं हैं। इस पर्वत पर चार गुफा मंदिर है। जिनमें मूल नायक भद्रवाहु स्वामी की प्रतिमा है । अन्य प्रतिमानों में कुछ भट्टारकों की भी हैं । किन्तु सब ही प्रतिमायें ११ वी १२ वीं शताब्दी की हैं। भद्रवाहु स्वामी की प्रतिमा का होना इस बात की दलील है कि उन्होंने इस पर्वत पर भी तप किया था। वन्दना करके यहां से दो मील दूर तुगी पर्वत पर जाते हैं। मार्ग संकीर्ण है और चढ़ाई कठिनसाध्य हैं, परन्तु सावधानी रखने से बच्चे भी बड़े मजे में चले जाते हैं। इस रास्ते में श्रीकृष्ण जी के दाह संस्कार का कुण्ड भी पड़ता है । यदि वस्तुतः यहीं पर बलदेव जी ने अपने भाई नारायण का दाह संस्कार किया था, तो इस पर्वत का प्राचीन नाम 'शृङ्गी' पर्वत होना चाहिये, क्योंकि 'हरिवंश पुराण' (६२;७३) में उसका यहीं नाम लिखा है। तुङ्गी पहाड़ पर तीन गुफा मन्दिर हैं, जिनके दर्शन