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[६० ] दि० जैनधर्म के पोषक थे । निःसन्देह अजमेर जैनधर्म का प्राचीन केन्द्र स्थान हैं। मूलसंघ के भट्टारकों की गद्दी यहाँ रही हैं और पहाड़ पर पुरातन जैन कीर्तियां थी। शहर में १३ शिखरबन्द मन्दिर और दो चैत्यालय हैं । मंदिरों में सेठ नेमिचन्द जी टीकमचन्दजी की नसियां कलामय दर्शनीय है। दूर-दूर के अर्जन यात्री भी उसे देखने पाते है। यह मन्दिर तीन मंजिल का बना हुआ है। पहली मजिल में अयोध्या और समवशरण की रचना रंग. बिरंगी मनोहर बनी हुई हैं। दूसरी मंजिल में स्फटिक माणिक
आदि की प्रतिमायें विराजमान है । दीवालों पर तीर्थक्षेत्र के नक्शे व चित्र बने हुए हैं। तीसरी मंजिल में काठ के हाथी घोड़े आदि उत्सव का सामान है ! मन्दिर के सामने एक उत्तुग-मानस्तम्भ बना हैं, जिसे सेठ भागचन्दजी ने बनवाया है। अन्य मन्दिर भी दर्शनीय हैं । एक प्राचीन भट्टारकीय गद्दी रही है। जिसमें कई भट्टारक प्रभावशाली हुए हैं। मन्दिर में भ० हर्षकीर्ति का विशाल शास्त्र भंडार है, जिनमें १५ वीं शताब्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों का पच्छा संग्रह है शहर में दरगाह आदि देखने योग्य चीजें हैं। यहां से राजपूताना और भव्यभारत की तीर्थ यात्रा के लिए उदयपुर मध्य जावे।
उदयपुर उदयपुर में पाठ दिगम्बर जैन मन्दिर हैं-दो चैत्यालय भी है। दो-तीन मन्दिरों में अच्छा शास्त्र भण्डार है। संभवनाथ जी के मन्दिर में शास्त्रों का अच्छा संग्रह है। एक मन्दिर अकेवालों का भी है। १५ वीं शताब्दी तक के लिखे हुए ग्रन्थ हैं। अनेक गुटकों में भी प्राचीन रचनाओं का संग्रह हैं। यहां राज्य की इमारतों और प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय हैं। यहां की झील संसार में प्रसिद्ध है। ४० मील दूर केशरिया जी तांगे में जावे ।
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