Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 83
________________ [७६] यह भी हैं? प्राचीन कारीगरी के बने हैं, परन्तु इनकी शिखरें नई . बनाई प्रतीत होती हैं। इनमें से पहिले मंदिरों के सामने एक गज भरऊँचा स्तम्भ बना हुआ है। जिस पर दोदिजैन प्रतिमायें मध्य कालीन प्रतिष्ठित हैं। मंदिरों में सं० १५४६ से १९६७ तक की प्रतिमायें विराजमान हैं। दूसरे मंदिर में विराजित श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी की हरित पाषाण की प्रतिमा मनोज्ञ और अतिशययुक्त हैं। इस प्रतिमा को सं० १६६० वैशाख शुक्ला १३ के दिन मूल संघ के भ० श्री प्रभाचन्द्र जी के प्रति शिष्य और भ० सुमतिकीतिदेव के शिष्य वादी मदभंजन श्री भ० वादीभूषण के उपदेशानुसार अहमदाबाद निवासी किन्हीं हूमड़ जातीय श्रावक महानुभाव ने प्रतिष्ठित कराया था। थोड़ी दूर आगे चलने पर एक और मंदिर मिलता है, जिसका जीर्णोद्धार श्री चुन्नूलाल जी जरी वाले द्वारा सं० १९६७ में कराया गया है और तभी की प्रतिष्ठित जिन प्रतिमा भी विर जमान हैं । फिर तालाब के किनारे दो मंदिर हैं। एक मंदिर बड़ा है, जिसके प्राकार की दीवार पर कतिपय मनोज्ञ दि. जैन प्रतिमायें अच्छे शिल्प चातुर्य की बनी हुई हैं और प्राचीन हैं। इस मंदिर का जीर्णोद्धार सं० १९३७ में सरंडा के सेठ गणेश गिरधर जी ने कराया था। तभी की प्रतिष्ठित श्री सुपार्श्वनाथ जी प्रभृति तीर्थङ्करों की पांच छः प्रतिमाये हैं। पाश्वनाथ जी की एक प्रतिमा सं० १५४८ की है। शेष प्रतिमायें भ० वादीभूषण द्वारा प्रतिष्ठित हैं। इस मंदिर के सामने श्री लवकुश महामुनि की चरणपादुकायें (सं० १३३७) एक गुमटी में बनी हुई हैं। उनके सन्मुख एक दूसरा मंदिर बन गया है । इनके आगे सीढ़ियों की चढ़ाई है, जिनके दोनों तरफ दि० जैन प्रतिमायें लगी हुई हैं। कालिकादेवी का मंदिर है, जिसे हिन्दू पूजते हैं। इन्हीं सीढ़ियों से एक तरफ थोड़ा चलने पर पहाड़ की नोक पाती है। यहीं लवकुश का निर्वाण स्थान है। वापस बड़ोदा पाकर

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