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[७४ ] १६ वीं शताब्दी तक की प्रतिमायें और शिल्प दर्शनीय हैं, किन्तु जीर्णोद्धार के मिस से मंदिरों की प्राचीनता नष्ट कर दी गई है। प्रतिमाओं पर लेप कर दिया गया है, जिससे उनके लेख भी छिप गए हैं। दो स्थानों पर चरण बने हुए हैं। एक जल कुण्ड है । यहाँ से चार मील नासिक शहर जावें, जो हिन्दुओं का तीर्थ है । जैनियों का एक मंदिर है। यहां से इस प्रोर के शेष तीर्थो के दर्शन करने जावे अथवा सीधा बम्बई जावे । अब यहाँ पर एक ब्रह्मचर्याश्रम स्थापित हो गया है।
आष्टे (श्री विघ्नेश्वर-पार्श्वनाथ) । पाष्टे अतिशय क्षेत्र शोलापुर जिले में दुधनी स्टेशन (दक्षिण रेलवे) से पास पालंद से करीब ३६ मील है। यहाँ एक अतीव प्राचीन चैत्यालय है, जिसमें मूल नायक श्री पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा दो फुट ऊँची पद्मासन विराजमान है। वह सम्भवतः शकसम्वत् ५२८ की प्रतिष्ठित है। प्रतिवर्ष लगभग दो हजार यात्री दर्शनार्थ आते हैं।
उखलद अतिशय क्षेत्र * उखलद क्षेत्र परभणी जिले में पिगली (दक्षिण रेलवे स्टेशन के करीब ४ मील पूर्णा नदी के किनारे पर है। यहाँ प्राचीन दि० जैन मंदिर पत्थर का बना हुमा-नदी के किनारे पर अत्यन्त शोभनीय है। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अपूर्व है। मंदिर में श्री नेमिनाथ जी की काले पाषाण की वृहदाकार प्रतिमा विराजमान हैं, जिनके अंगूठे में एक समय पारस पत्थर लगा हुआ था । कहते हैं वहाँ के मुसलमान शासक ने जब उसे लेना चाहा, तो वह अपने माप छूटकर नदी में जा पड़ा और मिला नहीं। इसलिए यह अतिशय क्षेत्र हैं और यहाँ प्रति वर्ष माघ में मेला होता है । मंदिर का कुछ भाग नदी में बह गया था। प्रतः प्रतिमा निन्द्र नवागढ़