Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 77
________________ [७३ ] करना चाहिए। प्रतिमायें पुराने ढंग की हैं। उनके स्थान पर नवीन शिल्पकारी की प्रतिमायें विराजमान करने का विचार प्रबन्धकों का है, परन्तु क्षेत्र की प्राचीनता को बताने वाली यह प्रतिमायें उस अवस्था में भी वहां अवश्य रहनी चाहिए। यहां मूलनायक श्री चन्द्रप्रभू स्वामी की प्रतिमा करीब ४ फुट ऊँची पद्मासन है। मार्ग में उतरते हुये एक 'अद्भुत जी' नामक स्थान मिलता है, जहां पर कई मनोज्ञ और प्राचीन प्रतिमायें दर्शनीय हैं। यहीं पर एक कुण्ड है। मांगीतुंगी से उसी लारी में गजपंथा जी जावे। गजपंथा गजपंथ क्षेत्र प्राचीन है और वह नासिक के समीप है। नासिक का उल्लेख भगवती आराधना में किया गया है और गजपंथ का उल्लेख पूज्यपाद की निर्वाण भक्ति में है और असग कवि के शान्तिनाथ चरित्र में पाया जाता है, पर वह यही है यह विचारणीय है। वर्तमान गजपंथा पर्वत ४०० फीट ऊँचा छोटा सा मनोहर हैं। गजपंथ से ७ बलभद्र और गजकुमार आदि माठ करोड़ मुनिगण मोक्ष पधारे हैं। धर्मशाला की इमारत नई और सुन्दर है। बीच में मानस्तम्भ सहित जिन मंदिर है। इस मानस्तम्भ को महिला रत्न कुकुबाई जी ने निर्माण कराया है। यहां मे १।। मील दूर गजपंथ पर्वत है। नीचे बंजीबाबा का एक सुन्दर मंदिर और उदासीनाश्रम है। यहीं वाटिका में भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्ति जी की समाधि बनी हुई है। यहीं से पर्वत पर चढ़ने का मार्ग है, जिस पर थोड़ी दूर चलते ही सीढ़ियां मिल जाती हैं। कुल ४३५ सीढ़ियां हैं। पहले ही दो नये बने हुए मंदिर मिलते हैं। जो मनोरम हैं। एक मंदिर में श्री पार्श्वनाथ जी की विशालकाय प्रतिमा दर्शनीय हैं। इन मंदिरों के बगल में दो प्राचीन गुफा मंदिर मिलते हैं । यह पहाड़ काट कर बनाये गए हैं और इनमें १२ वीं से

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