Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 69
________________ [ ६५ ] स्वामी भट्टारक देवेन्द्रकीति जी के पास बताया जाता हैं, जो होंम्बुच मठ में रहते हैं। उन्हें इस क्षेत्र का माहातम्य प्रकट करना चाहिए । मन्दिर के सामने मानस्तम्भ भी है। विजयनगर के सम्राट देवराय ने इस मन्दिर के दर्शन किये थे और दान दिया था । इसी के पास तालाब में एक 'जलमन्दिर' है, जिसके दर्शन करने के लिए छोटी-छोटी किश्तियों में बैठ कर जाया जाता है । मन्दिर के बीच में एक चौमुखी प्रतिमा प्रतिशयवन विराजमान है। संभव है कि इस क्षेत्र का सम्बन्ध नेमिनाथ स्वामी के तीर्थ में जन्मे हुए वरांग कुमार से हो। यहां से वापस मूड़बद्री होते हुये हासन स्टेशन से हुबली जाना चाहिये । कम् (कॉंजीवरम् ) मद्रास से कांजीवरम् जब जाये तब अप्पक्रम क्षेत्र और कांजीवरम् के भी दर्शन करे। अप्पकम काँजीवरम् स्टेशन से 8 मील दक्षिण में है। यहां पर एक प्राचीन छोटा सा मन्दिर अनूठी कारीगरी का दर्शनीय है, जिसमें आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा विराजमान है। वापस कांजीवरन् जावे वहाँ कोई मन्दिर नहीं है, परन्तु तिरुपथी कुनरन में 'वेयावती' नदी के किनारे दो दि० जैन मन्दिर अनूठी कारीगरी के हैं। दर्शन करके तिण्डिवनन् रेल स्टेशन का टिकट लेकर वहाँ जावे। यद्यपि यहाँ जैनियों के पाँच गृह हैं, परन्तु जिन मन्दिर नहीं है - एक बगीचे में जिन प्रतिमा है। कॉजीवरम् बहुत प्राचीन शहर है और उसका सम्बन्ध जैनों, बौद्धों और हिन्दुत्रों से है । पेरुमण्डूर पेरुमण्डूर तिण्डिनम् से ४ मील दूर है, जहाँ दि० जैनियों की बस्ती काफी है। ग्राम में दो जिन मन्दिर हैं और सहस्राधिक जिन मूर्तियाँ हैं। जब मैलापुर समुद्र में डूबने लगा, तब वहाँ की

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