Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 55
________________ [५१ ] तपस्या करते थे। यहांके 'कुन्दवई' जिनालय का सूर्यवंशी राजराज महाराजा की पुत्री अथवा पांचवं चालुक्म राजा विमलादित्य की बड़ी बहनने बनवाया था। श्री परवादिमल्ल के शिष्य श्रीअरिष्टनेमि प्राचार्य थे, जिन्होंने एक यक्षिणी की मूर्ति निर्माण कराई थी। इस प्रकार यह तीर्थ अपनी विशेषता रखता है। पौन्नूर से वापस मद्रास आवे, जहां से बैंगलोर जावें । बेंगलौर रियासत मैसूर की नई राजधानी और सुन्दर नगर है । दि० जैन मन्दिर में ६ प्रतिमाये बड़ी मनोज्ञ हैं । धर्मशाला भी है। यहां कई दर्शनीय स्थान है, यहां से पारसीकेरी जाना चाहिए। आरसीकेरी पारसीकेरी प्राचीन जैन केन्द्र है। होयसल राजाओं के समय में यहां कई सुन्दर जिन मंदिर बने थे, जिनमें से सहस्रकूट जिनालय टूटी फूटी हालत में है। उसमें संगतराशी का काम : अति मनोहर है। जैन मंदिर में एक प्रतिमा धातुमयी गोम्मट स्वामी की महा मनोज्ञ प्रभायुक्त है। इस ओर इस जैन मदिर को 'बसती' कहते हैं। यहां से श्रवणबेलगोल (जैनबद्री) के लिए मोटर लारी जाती है। कोई २ यात्री हासन स्टेशन से जैनबद्री जाते हैं । लारी का किराया बराबर ही है। श्रवणबेलगोल (जैनबद्री) श्रवणबेलगोल जैनियों का अति प्राचीन और मनोहर तीर्थ है। उसे उत्तर भारतवासी 'जैनबद्री' कहते हैं । यह 'जैन काशी' . और 'गोमटतीर्थ' नामों से भी प्रसिद्ध रहा है। यह अतिशय क्षेत्र कर्नाटक प्रान्त के हासन जिले में चन्द्ररायपट्टन नगर से ६ मील है। यहाँ पर श्री बाहुबलि स्वामी की ५७ फीट ऊंची अद्वितीय

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