Book Title: Jain Tirth aur Unki Yatra
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 58
________________ [ ५४] चौबीसी पट्ट विराजमान हैं। इस मन्दिर के उत्तर पश्चिम में एक कुण्ड हैं। उसके पास चेन्नण्ण बस्ती नामक एक दूसरा मन्दिर है, जिसमें चन्द्रनाथ भ० की पूजा होती है। मन्दिर के सामने एक मानस्तम्भ है। लगभग १६७३ ई० में चेन्नगण ने यह मन्दिर बनवाया था। इसके आगे ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ 'प्रोदेगल बसती' नामक मन्दिर है। यह होयसल-काल का कड़े कंकड़ का बना हुआ मन्दिर है । इस मंदिर की छत के मध्य भाग में एक बहुत ही सुन्दर कमल लटका हुया है। श्री आदिनाथ भगवान की जिन प्रतिमा दर्शनीय हैं। श्री शान्तिनाथ और नेमिनाथ की भी प्रतिमायें हैं । ___ इस विध्यगिरि पर्वत पर ही एक छोटे घेरे में श्री बाहुबलि (गोम्मट) स्वामी की विशालकाय मूर्ति विराजमान है। इस घेरे के बाहर भव्य संगतराशी का त्यागद् ‘ब्रह्मदेव स्तम्भ' नामक सुन्दर स्तम्भ छत से अधर लटका हुआ है। इसे गंगवंश के राजमन्त्री सेनापति चामुण्डराय ने बनयाया था, जो श्री गोमटसार' के रचयिता श्री नेमिचंद्राचार्य के शिष्य थे। गुरु और शिष्य की मूर्तियां भी उस पर अंकित है। इस स्तम्भ के सामने ही गोम्मटेश मूर्ति के प्राकार में घुसने का प्रखण्ड द्वार हैं-वह एक शिला का बना हुआ है। इस द्वार के दाहिनी ओर बाहुबलि जी का छोटा सा मंदिर और ब.ई ओर उनके बड़े भाई भरत भगवान का मन्दिर हैं । पास वाली चट्टान पर सिद्ध भगवान की मूर्तियां हैं और वहीं 'सिद्धरबस्ती हैं, जिनके पास दो सुन्दर स्तम्भ हैं। वहीं पर 'ब्रह्मदेवस्तम्भ' है और गुल्लकायि जी की मूर्ति है। चामुण्डराय के समय में गुल्लकायि जी धर्मवत्सला महिला थी। लोकश्रुति है कि चामुण्डराय ने बड़े सजधज से गोम्मट स्वामी के अभिषेक की तैयारी की, परन्तु अभिषिक्त दूध जाँघों के नीचे नहीं उतरा,

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