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( पृष्ठ ४ पर्यायकारना कथन उपर टिप्पणी.)
जीवनी साथे कर्मनो प्रवाहथी अनादि संबंध छे. तेम जो मान__ वामां न आवे तो मोटां दूषणो आवेछे, ते आ प्रमाणे:
१. जो जीव पहेलो अने कर्मनी उत्पत्ति जीवमा पछी थइ एम मानवामां आवे तो कर्मरहित आत्मा निर्मल सिद्ध थाय, निर्मल आत्मा संसारमा ( शरीरधारी) उत्सन्न थइ शके नहि, नहि करेला कर्मना फळने भोगववानुं होय नहि, विना करे कर्म, फळ भोगववामा आवे तो सिद्धने पण कर्मठे फळ भोगवg पडे अने कृत-(करेला) नो नाश तथा अकृत-(नहि करेला ) नुं आगमन इत्यादि दूपण लागे.
२. जो कर्म पहेलो उत्पन्न थयां अने जीव पछी थयो एम माने तो ते घटतुं नथी. केमके जेम माटीमाथी घडो थायछे तेम जेमांथी जीव उत्पन्न थइ शके एवा उपादान कारण विना जीव उत्पन्न थइ शके नहि, जीवे जे कर्म कर्यां न होय तेनुं फल तेने होय नहि, जीव (कर्ता ) विना कर्म उत्पन्न थइ शके नहि, इत्यादि.
३. जो जीव अने कर्म एकज वखते उत्पन्न थयां एम माने तो ते पण असत् छे. केमके जे वस्तु साथे उत्पन्न थाय तेमां का अने कर्म एवो भेद होय नहि, जीवे जे कर्म कर्यु न होय तेनुं फल जीवने होय नहि, जेमांथी जीव अने कर्म उत्पन्न थइ शके एवां उपादान कारण विना जीव अने कर्म पोतानी मेळेज उत्पन्न धइ शके नहि, इत्यादि.
४. जो जीव सच्चिदानंदरूप एकलो छे अने कर्म छ ज नहि एवो पक्ष स्वीकारे तो तेथी जगत्नी विचित्रता सिद्ध थाय नहि. ।
५. जो जीव अने कर्म कंइ ज छे नहि एवं मानवू थाय तो ते पण मिथ्या छे. केमके जो जीवज नथी तो ए ज्ञान कोने थयं के कंइज छे नहि. ___ एटलावास्ते जीव अने कर्ननो संयोगसंबंध प्रवाहधी अनादि छे एज मानवू युक्तिधी सिद्ध छे.-अज्ञानतिमिरभास्कर,