Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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राम पण सीतार्नु मौलिरत्न पामीने सीता मळ्या जेटली रति (मुख) मानता हता. आमांना एके दृष्टांतमा कोइना शरीरनो आकार नहोतो तेम छतां ते अजीव वस्तुओथी तथाप्रकारचं मुख यतुं हतुं. त्यारे ईश्वरनी प्रतिमा पण सुखने माटे केम न थाय ? पांडवचरित्रमा लोकमतीत प्रसिद्ध बात छे के द्रोणाचार्यनी प्रतिमा पासेथी लव्य नामना भीले अर्जुनना जेवी धनुर्विद्या सिद्ध करी हती. चंचादिक (क्षेत्रमा उभी करवामां आवती पुरुषाकृति वगेरे) अजीव वस्तु छतां क्षेत्रादिनी रक्षा करवामां समर्थ थाय छे, वळी लोकमां मनायछे के अशोक वृक्षनी छाया शोक हरण करेछे, कलि-(बहेडा) नी छाया लोकमां कलह माटे थायछे, अजारज (बकरीनी खरीयोथी उडती धूल) वगेरे पुण्यहानि माटे थायछे, अस्पृश्य चंडाल वगेरेनी छाया पण उल्लंघाय तो पुण्यनी हानि करेछ, सगर्भा स्त्रीनी छाया उल्लंघन करनार भोगी पुरुष, पौरुष हणेके. अने महेश्वरनी छाया उल्लंघन करनार उपर महेश्वरनो रोप पायछे. ए प्रमाणे घणा पदार्थ अजीव छतां सुखदुःखना हेतु थायछे. त्यारे देवाधिदेव-(परमेश्वर) नी प्रतिमा पण अजीव छतां अहीं मुखनो हेतु कम न थाय? एवं पण मा कहो के परमेश्वरना दर्शनथी भरना पापन हरण थाय पण प्रतिमानी पूजा करवामां आवे.
ने अजीव होवाथी शुं फल आपे ? परमेश्वरनी प्रतिमा अजीव पता पण तेने पूजवाथी पुण्य-फल जरुर थायछे. जेनी जेवी जेवी अवस्था-गुण विशिष्ट प्रतिमा चित्तमां होय, तेना ते ते गुणो ते मतिमायी संपादन थइ शकछे. लोकमां मनायछे के, ग्रहोनी प्रतिमाना पूजनधी ते संबंधी गुणो-फल थायछे सतीओनी, क्षेत्राधिपनी, पूर्वजोनी, ब्रह्मानी, मुरारिनी, शिवनी अने शक्तिनी स्थापनाने मानवाथी हित अने नहि मानवाथी अहित थायछे स्तूपो पण तेवी

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