Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 245
________________ - 30 मिथ्या ( असत् ) कल्पनाथी थयेली समजबी. जेथ नलिनीक अने मर्कट भ्रमथी बंधायछे तेम आ आत्मा पण भ्रमथी बंधायलोछे. ज्यारे मनमाथी भ्रम जाय छे त्यारे आ आत्मा मुक्त थायछे अने मुक्त थायछे एटले आत्मानो अने परमात्मानो अभेद थायछे. ज्यारे __आत्मानो अने परमात्मानो एकभाव देखायछे त्यारे योगी आत्मज्ञानी लेछ. पण जो ते वखते भ्रम-शंका राख्या वगर शुक उडी जायछे ___ तो मुक्त थायछे-बंधनमा आवतो नथी. मर्कट (वांदरा)ले पकडवा माटे पण चणा भरेलं एक पान ( वासण) मुकवामां आवेछे. त्यां चणा खावा माटे मर्कट आवे छे अने पात्रमा हाथ नांखी चणानी मुठी वाळी काहवा जायचे. पण पात्रतुं मुख नानुं होवाथी मुठी वाळेलो हाथ नीकळतो नथी. त्यारे मर्कट कोइए तेने पकडेलो न छता भ्रमथी अंदरथी पकड्योछे एवु मानी लइ चीची करवा लागेछे. एटले तेने पकडबावाला आवीने बांधी लेछ. पण जो भ्रम राख्या बंगर बठी वाळेली छोडी दइने मर्कट चाल्यो जायछे तो बंधनमा आवतो नथी. जेवी रीते शुक अने मर्केट अबद्ध छतां भ्रमथी पोताने बद्ध मानी लइ बंधायछे तेवी रीते आ आत्मा पण अनात्मीय वस्तुमा ए पोतीकी छे एवी बुद्धि करवाथी-बहिरात्मपणे अमुक पोताने हेय (त्यागवा योग्य ) छे ने अमुक उपादेय (आदरवा योग्य ) ले एवा विचारयी रहित थइ केवल इंद्रियोना विषयोमा आसक्ति राखवाथी कोंबडे बंधायछे अने ज्यारे शरीरादि वस्तुमां अनात्मीयता आचरी-अंतरात्माथी हेयोपादेयना विचार पूर्वक विषय सुखथी पराङ्मुख एटले के संसारवति वस्तुमा रागद्वेष रहित थायछे त्यारे ते संसारमा रह्या छतां पण शुक्त थाय छे अने ज्यारे तेवी रीते मुक्त थायछे त्यारे ते अंतरात्माने केवलज्ञान प्रकट थवाथी परमात्मता माप्त थायछे-पर्यायकार.

Loading...

Page Navigation
1 ... 243 244 245 246 247 248 249