Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 246
________________ opn (६६) कहेबायछे, ते न फेवलज्ञानमय कर्म--क्रिया-भ्रांतिथी विमुक्त मुनीश्वर कडेवायछ. आ आत्मा मुक्त-भ्रम रहित छे एबुं ज्यारे प्रसिद्ध थायछे त्यारे ते सर्वत्र ममत्व रहित होयछे. वधारे शुं ? मनेशरीर-सुख-दुःख-ज्ञान-विचारथी ते शून्य होयछे. ए रीते मुक्त यवादी तेने पुण्य पाप लागतां नथी. मननो जय करेलो होवाथी आ मारी क्रिया, आ मारो काळ, आ मारो संग (सहायक), आ मारुं सुकृत (पुण्य) इत्यादि भेद पण तेने होतो नथी. ज्यां सुधी ते आ लोकमां शरीरधारी होयछे त्यां सुधी तेने सूक्ष्म क्रिया होयछे एटलेके ते निष्क्रिय होतो नथी. ज्यारे सूक्ष्म क्रिया पण नष्ट थायछे त्यारे ते मुक्त-भ्रम रहित आत्मा सिद्धताप्राप्त थवाथी सिद्ध थायछे, सिद्ध क्रियावंत छे. के निष्क्रिय छे ते विचारवा योग्य छे. निष्क्रिय कहेवाता सिद्धमा ज्ञानधी अने दर्शनथी थती क्रिया शुं सिदन थाय ? ज्ञानथी अने दर्शनथी थती क्रिया सिद्धि पामेला-सिद्धोमां होती नथी. जो पूछवामां आवे के, केवी रीते ? तो समजाववानुं के, सिद्धि पामेला आत्मा आलोकमा छतां तेमने ज्यारे कैवल्यनी प्राप्ति था हती-केवलज्ञान अने केवलदर्शन थयुं हतुं त्यारे ज ज्ञानथी अने दर्शनथी थती वे क्रियाओ तेमने एकी वरखते थइ गइ हती अने माणवा योग्य तथा जोवा योग्य भूत, भविष्य अने वर्तमान प्रणे फाळना जे जे भाव ने सर्व प्रकट थया हता. तेमने नईं कंइ पण जाणवानुं अने जोवानुं होतुं नथी. अर्थात् मुक्त-भ्रमरहित जीवोने मनुष्यभवयां सक्रियत्व होयछे अने सिदिमां निष्क्रियत्व होयछे, ए रीने सिदोमांमसिद्ध रीने निश्चय पूर्वक निष्क्रियता सिद्ध थइ अने ए सर्वनो हेनु मनोनिगेध-योग छे गाटे ए ज मार्गमा रमण करो.

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