Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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छे, परंतु जे महान् योगीओ द्रव्यप-परिग्रह विना आ संसारमा सदा शोभेछे तेमने माटे परमेश्वरनुं नामस्मरण ज युक्त छे. तेनाथी तेमनो सर्व स्वार्थ सिद्ध थायछे. जेम झेरी जनावरना विषयी मूछी पामेला जीवोनुं विप बीजाए करेला गारुड-हंस-जांगुली मंत्रना जापथी उतरी जायछे तेम तत्व नहि जाणनारनु पाप पण परमेश्वरना नामस्मरणथी नाश पामेछे. बीनी एक वात लोकमां एवी प्रसिद्ध छे के हुमाय नामर्नु पक्षी अस्थिभक्षी (हाडकां खानारूं) छतां संतत जीवनी रक्षा करेछे. ते उडतुं उडतुं जतुं होय त्यारे जे मनुष्यना मस्तक उपर तेनी छाया पडे ते राजा थायछे. आ दृष्टांतमा हुमायपक्षी जाणतुं नथी के हुं अमुकना मस्तक उपर छाया करुंछु तेमज जेना मस्तक उपर छाया थायछे ते पण जाणतो नथी के मारा मस्तक उपर हुमायपक्षी छाया करेछे. ए रीते बंने अज्ञान छ तथापि हुमायपक्षीनी छायाना माहात्म्यना उदयथी ते मनुष्यने दरिद्रतानुं हरण करनार अधीशता (राज्य) उदय पामेछे अर्थात् ते राजा थायछे. जेम आ दृष्टांतमा उभय अजाण छतां ए प्रकारे सिद्धि थायछे तेम परमेश्वरना नामस्मरणथी पाप केम न जाय ? अर्थात् जाय ज पाप जाय एटले सर्वतः आत्मशुद्धि थाय. आत्मशुद्धि थाय एटले परमात्मवोध-उत्कृष्टात्मज्ञान थाय. परमात्मबोध थाय एटले कोइ प्रकारनो कमबंध न थाय अर्थात् कर्मनो प्रणाश थाय कर्मप्रणाश थाय एटले मोक्षलक्ष्मी प्राप्त थाय. मोक्ष थाय एटले अक्षय स्थिति, अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतवीर्य, अनंतसुख अने एकस्वभावता थाय. अर्थात् सज्ज्योति जागृत थाय.

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