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वीसमो अधिकार.
मुक्तिना विषयमा सर्वनुं कथन एकसरखं थतुं नधी. उपरना अधिकारमां आत्मज्ञान विना मुक्ति नथी - आत्मज्ञानयी मुक्ति थाय छे एम कहेवामां आव्युंछे. वैष्णवो विष्णुथी, ब्रह्मनिष्ठो ब्रह्मयी, शैवो शिवथी अने शाक्तिको शक्तिथी मुक्ति थवानुं कहेछे. तेमना मते आत्मज्ञान मुक्तिनुं कारण नथी. अर्थात् आत्मज्ञानथी ज मुक्ति थायछे एवो निर्णय नथी. तेम छतां आत्मज्ञानथी मुक्ति थाय छे एवो निश्चय करवो ते शुं विचारवा योग्य नथी ?
वैष्णवादिको लोकरूढिने लेइने विष्णुप्रमुख भिन्न भिन्न देखेछे. परंतु परमार्थथी विष्णु वगैरे शब्दोवडे आ आत्माज वाच्य-बोध्यसमजवा योग्य छे. आत्माने केवलज्ञान प्राप्त थाय छे त्यारे सर्व कोकालोकनुं स्वरूप तेना जाणवामां आवे छे. अर्थात् ज्ञान एज आत्मा ते वडे सर्वत्र व्यापवाथी आत्मा ज विष्णु छे. निज शुद्ध आत्मभाव जेने परब्रह्म एवी संज्ञा आपवामां आवेछे तेनी भावना भाववाथी आत्मा ज ब्रह्मा छे. शिव-निर्वाण - मोक्ष प्राप्त करवाथी अने शिवनुं कारण होवाथी आत्मा ज शिव छे. निज आत्मवीर्य-शक्ति फोरववाथी ( वापरवाथी ) आत्मा ज शक्ति छे. ए रीते विष्णु प्रमुख शब्दोवडे आत्मा ज समजवो अने आत्माथी - आत्मज्ञानथी ज मुक्ति छे-वीजा कशाथी मुक्ति प्राप्त थवा योग्य नथी एवं तत्त्व स्वहृदयमां चिंतaj, जो आत्मज्ञानथी मुक्ति थती न होय अने विष्णु प्रमुखथी मुक्ति थती होय तो वैष्णवादि संतो अने गृहस्थो विष्णु प्रमुखनी पूजा अने जान करो पण तप, संयम, निःसंगता :