Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 206
________________ ( २६) दशमो अधिकार. *निगोद जीवो अनंत काळ सुधी निगोदमा ज रहेछे. नारक जीवोने पडता दुःख करतां अनंत गुणुं दुःख ते अनुभवेछे अने • एक एक समयमां अनेक (-आठ-) वार जन्म मरण करेछे. एमने मन पण होतुं नथी. जे जीवो व्यवहार राशिमां आवेछे ते क्रमे करीने विशिष्ट होय छे. व्यवहार राशिमांथी जे जीवो पाछा जायछे ते फरीने निगोह जेवा थायछे. आ केवी रीते थायछे ? निगोदना जीवो तेमना जाति स्वभावथी अने महार्तिदायक उत्तरकाळनी तादृश प्रेरणाथी सदैव दुःख पामेछे. अत्र दृष्टांत. लवण समुद्रनुं पाणी सदाकाळ खालं होयछे. अनंत काळे पण पीवा योग्य यतुं नथी तेम वांतर पण पामतुं नथी. एम थतां थतां लवण समुद्रने अनंतानंत काळ थइ गयो. जेम लवण समुद्रनु पाणी मेघनु मुख प्राप्त थये गंगादि महानदीमा आववाथी पीवा योग्य थायछे, तेम निगोदाथी नीकळीने व्यवहार राशिमां आवेला जीवो मुखी थायछे. जेम गंगादि महानदीनुं पाणी लवण समुद्रमा पार्छ जवाथी समुद्र जळना रूप अने रस युक्त-खारुं थायछे तेम व्यवहार राशिमायो निगोदमां पाछा गयेला जीवो निगोद जेवा दुःखी थायछे. वीजें घटात. दान्त्रिक-(भुवाना) हृदयमां * निगोइना जीवो वे प्रकारनी राशियोमा छे, अव्यवहार अने व्यवहार. तेमां निगोद संज्ञायी सामान्यतः अव्यवहार राशिनुं ग्रहण थायछे. हिर्व एकोन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय अने चतुरिन्द्रय जीवोने मन होतुं नवी. पंचेन्द्रिय जीवोमा जे संज्ञी छे तेमने मन होयछे, असंनीने मन होतुं नथी.-जैन सिद्धांत.

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