Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 217
________________ ( ३७ ) तेरमो अधिकार. -- केटलाक कहेछे के—पुण्य नथी, पाप नथी, स्वर्ग थी, नरक नथी, मोक्ष नथी, पुनर्जन्म नथी, मनथी कंइ ग्रहण थइ शकतुं नथी अने जेमां पांचे इन्द्रियोनो विषय होय एवा प्रत्यक्ष शिवाय अन्य प्रमाण मानवा योग्य नथी. ए शुं युक्तिमत् छे ? जे वस्तु दृश्य ( इन्द्रियगोचर ) होय ते ज सत् अने बीजी असत् एवी मान्यता योग्य नथी. जेमां पांचे इन्द्रियोनो विषय होय एवी कइ वस्तु छे ते तेमने विचारखुं. जो कहे के, शुं रामादि (वी वगैरे ) वस्तुमां सर्व इन्द्रियोनो विषय नथी ? तो विचारवानुं के, रात्रिना वखते शब्रूपथी सरखी पण जे पूर्वे कहेली रामादि वस्तु नथी तेमां ते रामादि वस्तुनो भ्रम शुं नथी थतो ? जो कहे के, रात्रिना वखते सर्व इन्द्रियो अववोधनी हानि थवाथी प्रायः मोह पामे छे अने तेने लीधे रामादि नहि एवी वस्तुमां रामादि वस्तुनो-अतद्वस्तुमां तद्वस्तुनो भ्रम थाय छे, त्यारे तो सिद्ध युं के इन्द्रियो द्वारा थतुं ज्ञान हमेशां सत्य होतुं नथी. नीरोगी पुरुष शंख सफेद छे एम जोइने लेछे. पछी तेनेज ज्यारे काचकामळी रोग थायछे त्यारे ते शंख बहुरंगवाळो छे एम शुं ते नथी कहेतो ? पुरुषतुं मन ज्यारे स्वस्थ होयछे त्यारे ते स्ववन्धुओने ओळखेले पण ते ज ज्यारे मदिराथी उन्मत्त थयो होयछे त्यारे शुं ओळखी शकेछे? आ वे दृष्टान्तोमांना पुरुषोमां इन्द्रियो तेनी ते ज छतां एटलो विपर्यास शाथी थयो ? ए पुरुषोतुं कयुं ज्ञान साचुंप्रमाण : पुरातन - रोगादि थता पहेलांनुं के आधुनिक - रोगादि थमा पछीनुं ? आधुनिक नहि पण पुरातन साचुं एम जो कहे तो

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