Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha
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(४६ ) सोळमो अधिकार
स्वर्गमोक्षादि प्राप्त करवा साधन शुं छे ? हिंसा, असत्य, चोरी, स्त्रीसंग अने परिग्रह ( पदार्थों उपरनी मी) ए सर्वनो सर्व प्रकारे त्याग करवाथी स्वर्गमोक्षादि प्राप्त थायछे. जगत्मसिद्ध भगवान् ए पांचने छोडीने ज सिद्ध थयाछे. मुमुक्षुओ ( मोक्षना अभिलाषी साधु-मुनियो ) मां सत्य, शील, क्षमा, उपकारिता, संतोष, निर्दूषणता, वीतरागता, निःसंगता, अप्रतिवद्धचारिता (विना प्रतिबंधे जवु आवq ) सज्ज्ञानिता, निर्विकारता, सद्गोष्ठिता, निश्चलता, प्रकाशिता, अस्वामिसेविता, अतीवसत्वता, निर्भीकता, अल्पाशनता (थोडं खावू ), विशिष्टता, संसारसंबंधजुगुप्सता इत्यादि जे अल्प गुणो होयछे ते ज ज्यारे ते मुमुक्षुओ सिद्धि पामेछे त्यारे क्षेनना प्रभावथी अर्थात् सिद्धस्वरुप शिव थवाथी अनंत थायछे. आमां केवलिनु वचन प्रमाण छे. सेवक स्वामीना शीलने अनुसरयूँ जोइए. आ बात लोकमां प्रतीत छे. तदनुसारे महानुभाव मुनियो सिद्धना गुणोने प्राप्त करवानी इच्छाथी सिद्ध जे अमूर्त, निराहार, गतद्वेष, वीतराग, निरंजन, निष्क्रिय, गतस्पृह, स्पर्धारहित, बंधनसंधिवर्जित, सत्केवलज्ञाननिधानसुंदर अने निरंतर आनंदामृतरसपूर्ण छ तेमना गुणोतुं यथाशक्ति अनुकरण करेछे. यद्यपि सिद्धना सर्व गुणोने पूर्णपणे सेववाने अहींआ भवमां ते समर्थ थता नथी तथापि आत्मयोग्य बल (वीर्य) फोरवीने सिद्धना गुणोनो आश्रय तो जरुर लेछे. ते आ प्रमाणे:सिद्धो अमृत प्रकाशे छे : साधुओ देह उपर ममत्व राखता नथी. सिद्धो अरू.पी छे : साधुओ शरीरना संस्कारनो तथा सत्कारना

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