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दृष्टी आलोकन करवामां तेमनी बुद्धि कुंठित रहेछ ( काम करती नथी). आलंबन विना तत्त्वत्रय - ( देव, गुरु अने धर्म ) मां ते विमोह पामेछे. माटे शुभार्थे भले निरंतर साकार देवपूजा, साधुओनी सेवा अने दानादि धर्म करो, उच्च ( उत्तम ) कुलाचारना यशना रक्षणार्थे गृहस्थो पूर्वे सर्व प्रकारना धर्मनुं सेवन करता माटे हाल पण गृहस्थो आत्मसंपदा माटे द्रव्यथी अने भावथी बने प्रकारे धर्मनो आश्रय ल्यो. गृहस्थो प्रायः सावद्य (पापमय व्यापार ) - मां रक्त, सदाकाळ ऐहिक अर्थप्राप्तिमां प्रसक्त, कुटुंबपोषणार्थे उच्च नीच घणी वार्त्ता - ( आजीविका ) मां आदरयुक्त, परतन्त्रताथी खिन्न अने मनमान्या पुण्यकार्यमा उद्यमवंत होयछे, ते आत्मरुचि प्रमाणे ज प्रवृत्ति करेछे. माटे स्वचित्तनी अभितुष्टि माटे जे पुण्य करे ते करवा द्यो. ए गृहस्थो हृदयमां जाणे एम धारीने द्रव्यधर्म करेछे के जेम आ मन द्रव्यवडे अन्य कर्मों कराव्याथी तुष्टि धारण करेछे तेमज द्रव्यवडे कोइ प्रकारना धर्म पण करीने स्व मनने प्रसन्न करीए. गृहस्थोना सर्व व्यापार द्रव्यथी सिद्ध थायछे तेथी द्रव्यवतोने द्रव्यवडे ज स्वधर्म साधवाने स्वाभाविक मन थायछे अने ते युक्त छे. केमके जेनुं जेमां वल होय ते ज वलवडे ते पोतानुं धार्यु करे. माटे द्रव्यधर्म करता गृहस्थोना मननी जे प्रकारे संसारकार्यथी संवृति थाय ते प्रकारे सालवन ( साकार देवपूजा, साधुसेवा अने दानादि ) द्रव्य धर्ममां - पुण्य विधियां ते मन- अपेक्षा राखो. स्वइन्द्रियोने संसार संबंधी क्रियामांथी रोकीने जेथी मन थोडं पण स्थिर थाय ते पूजादिनो ज आश्रय करो. ज्यांसुधी अनाकार पदार्थतुं चिंतन - सिद्ध परमात्मानुं निरालंबन ध्यान करवामां मन समर्थ न थाय अने मुसाधुकुसाधुनो निश्चय करवा योग्य ज्ञानोदय न थाय त्यांसुधी निश्चयदृष्टि कुलीन पुरुषे स्वव्यवहारनी
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