Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ (४०) चौदमो अधिकार. ___ एक प्रत्यक्षने ज प्रमाण मानवु, ते विचार करतां विवेकचक्षुवंतोने सर्व पदार्थनी सिद्धि माटे समर्थ लागतुं नथी. त्यारे सत्य शुंछे ? प्रवीणो कहे छे के, जे एक पद वडे वोली शकाय ते सत्पद अने जे सत्पद वडे वाच्य होय ते होय ज. दृष्टांत तरीके, आनंदशोकादि पूर्वे कहेला शब्दो. विशेषमां काल, स्वभाव, नियति, कर्म, उद्यम, प्राण, मन, जीव, आकाश, संसार, विचार, धर्म, अधर्म, स्वर्ग, नरक, विधि, निषेध, पुद्गल, परमाणु, सिद्ध, परमेश्वर इत्यादि. ए शब्दोमांना कोइ पण शब्दने बुद्धिमान् चेष्टा वडे प्रतिपादन करी शके एम नथी. पण वधा शब्दो सत्पद वडे प्ररूपवा योग्य छे. एमना वर्णो एक कर्णेन्द्रियथी ग्रहण थइ शके छे अने स्वस्वभावथी उत्पन्न थता ते ते प्रकारना फलथी अनुमान पण थइ शके छे. मात्र केवलज्ञानी जोइ शके छे. जे शब्दो वे अथवा वधारे पदोना संयोगयी थाय छे ते (तद्वाच्य वस्तु ? ) होय अथवा न पण होय. वंध्या अने पुत्र पृथक् पृथक् होय छे पण वंध्यापुत्र एवो युक्त शब्द (तद्वाच्य कोइ वस्तु विशेष ?) नथी. तेज प्रमाणे आकाशपुप्प, मरीचितोय (आझवानां पाणी), खरशृंग इत्यादि अनेक संयुक्त शब्दो युक्त नथी ( अर्थात् तद्वाच्य कोइ वस्तु नथी). कर्णेन्द्रिय वडे ग्रहण करवा योग्य भावथी पण एमनी सत्ता नथी. माटे इन्द्रियगोचर सर्व सत्य नथी. केटलाक संयोगज शब्द (तद्वाच्य वस्तु ?) होयछे, त्यारे तेमनो (संयुक्त शब्दोथी वाच्यनो ? )

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249