Book Title: Jain Tattvasara
Author(s): Atmanandji Jain Sabha Bhavnagar
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 211
________________ (३१) बारमो अधिकार. c0000 जगत्ना जीवो कर्म प्रमाणे सुखदुःख भोगवे छे ते कर्मगणने प्रेरणा करनार कर्ता, विधि, ग्रह, यम, परमेश्वर अथवा भगवान् कोइ होवा जोइए. जीव स्वाभाविक रीते सुखनो रागी अने दुःखनो द्वेषी होय ते स्वेच्छाए शुभ अने अशुभ कर्मोने केम भोगवे ? ___ जीवनो स्वभाव छे के ते शुभाशुभ कर्मोंने ग्रहण करे. जीवने मुख दुःखनो आपनार स्वकर्म विना वीजो कोइ नथी. कर्मना सिद्धान्तने जाणनारा कर्मने ज भाग्य, स्वभाव, भगवान्, अदृष्ट, काल, यम, दैवत, दैव, दिष्ट, विधान, परमेश्वर, क्रिया, पुराकृत, विधा, विधि, लोक, कृतान्त, नियति, कर्ता, प्राक्कीर्ण लेख, प्राचीन लेख, विधाताना लेख इत्यादि नामोथी शास्त्रमा प्रतिपादन करेछे. ___ कर्मने कोइ प्रेरणा करनार तो होवो जोइए. कर्म अजीव अने जड छे ते शुं करी शके ? कर्मनो एवो स्वभाव ज छे के ते सदा कोइनी पण प्रेरणा विना पोतानी मेळे आत्माने स्वस्वरूप योग्य फल पमाडे. जे जीवो अजीवशरीरनी साथे संबंध राखी हाल जीवेछे, पूर्वे जीवता हता अने भविष्यमा जीवशे, ते सर्वने कर्मोनी साथे त्रैकालिक संगम होवार्नु ध्यानमा राखq. आ समस्त जगत् षड् द्रव्य अने पंच समवाय-मयछे. तदन्य कंइ नथी. जीव अने धर्मास्तिकायादि पांच अजीव-ए छ द्रव्यो छे. धर्मास्तिकाय जीवने चालवामां सहाय करेछे, अधर्मास्तिकाय स्थिति करवानी प्रेरणा करे छे, आकाशास्तिकाय अवकाश आपे छे अने पुद्गलास्तिकाय वडे जीव आहारविहारादि करे छे. पुद्गलास्तिकायमां कर्मोनो अंतर्भाव थाय छे. काळ आयुष्यादि सर्व ममाणयुक्त वस्तुनुं प्रमाण करवामां उपयोगी छे. काळादि पंचसम

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