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भयथी वस्तुनी रक्षा करनार होवो जोइए ! एथी तो ईश्वरनी अशक्ति प्रकट करी. जो ईश्वरनी अचिन्त्य शक्ति छे तो शुं ते लोभी छे एवं कहेतुं छे ! जो नवाज जीवोने रचीने संसारिभाव पाडता होय तो मूळना स्वरचित जीवोने मुक्त करवाने शुं समर्थ नथी के ए प्रकारे विडम्बना देछे ? जो ईश्वर स्वरचितनो पण ए प्रकारे संहार करे तो एनो ए विवेक केवो ?- वाळक पण स्वकृत वस्तुने शक्ति पहोंचे त्यांसुधी साचवे छे.
जो ईश्वरनी ए लीला होय तो लीला करता लोकनी पण निंदा करवी न जोइए. तप यम ध्यान प्रमुखथी जो ईश्वर लभ्य होय अने ईश्वरने ए रुचतां होय तो जेने ए रुचे ते कदापि एवी लीला करे नहि. लोकमां पण जीवादिनो जेमां घात थतो होय एवी सर्व amrat ईश्वरे निषेध करेलो छे. 'वीजाने निषेध करे अने पोते आचरण करे 'ए तो कोइ अतीव निंदित होय तेज करे. एवं वगरे विचार्थी काम करनारने अमे ईश्वर कहेता नथी. जो ईश्वर पोते पवित्र, स्वजनने पावन करनार अने ज्योतिर्मयादि गुणोथी विशिष्ट होय तेम छतां एस्त्र अंशाने स्वरस्थी विमोह पमाडी संसारिभावम रचीने वहु दुःखनुं पात्र जीवत्व प्रेरता होय तो आ जीवो इश्वरांश नयी वीजा भले हो ! ईश्वर निजांशोने जाणता छतां पोताना रम्य स्वरूपमांथी पाडीने जेना उदरमां संकटनी पेटीछे एवा दौर्गत्य दौस्थ्यादिमय आ संसारमां सहसा केम प्रेरे ? जो ईश्वरनी ए लीला होय तो आ संसारज एने इष्ट छे, त्यारे संसारी जीवोए ईश्वरनी प्राप्ति माटे उग्र कष्टादिशा माटे करवुं ? एवी रीते असंबद्ध उद्गार काढनारना वचननी कदापि प्रतीति थाय नहि.
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त्यारे शुं कहें छे ?
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