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सर्व सुखमयी अथवा सर्व दुःखमयी धाय, भिन्नरूप न थाय, जो मायाने दरेक जीवप्रति पृथक् पृथक् प्रेरवामां आवती होय तो मायाने अनंतता प्राप्त थाय, जेथी माया अनेक प्रकारनी थाय अने जीवो पण भिन्नरूप थाय. “ एम हो " एवं कदी कहेवामां आवे तो पण माया जड छे ते शुं करी शके ? ईश्वरनी शक्तिथी माया वधुं करवाने समर्थ होय तो ईश्वरज सुखदुःखनो दाता हो ! वारु जीवोए ईश्वरनो शो अपराध कर्योछे के ते दरेक जीव प्रति एवी मायाने प्रेरे ? निरपराध जीवोने जे ए प्रकारे दुःखादि दे ते ईश्वर शेनो ? जे ईश्वरतुं ध्यान करता नथी ते ईश्वरना अपराधी होवाथी ईश्वर तेमने दुःख करतो होय ने जे ईश्वरनी सेवा करेछे तेमने ए सुखनी श्रेणि आपतो होय तो जे एवी प्रतिक्रिया करे ते ईश्वर तो रागी द्वेषी गणाय ! " एम हो, " एवं कदी कथन थाय तो जे ईश्वरने निंदतोए नथी तेम वंदतो पण नथी तेनी शी गति ? लोकमां जीवो त्रण प्रकारना छे. सेवक, असेवक अने मध्यस्थ. ज्यारे पहेला बे प्रकारना जीवोनी गति छे त्यारे मध्यस्थ जीवनी पण कोइ गति होवी जोइए. मध्यस्थ जीवनी कोइ गति नियत होय तो तेनो कर्त्ता कोण छे ? त्यारे एमज कहेतुं योग्य छे के जेवुं कर्म कर्यु होय तेवुंज सुख दुःख प्रमुख मळेछे.
जे कोइ एम कछे के ईश्वर ( कर्त्ता ) पोतामांथी जीवोने प्रकट करीने (सृजीने) संसारिभाव पमाडेछे अने महाप्रलय समये पाछो तेमनो संहार करेछे तेमने पूछवानुं के, ईश्वर विद्यमान जीवोने प्रकट करेछे के नवाज प्रकट करेछे ? जो प्रथम पक्ष होय तो वात सांभळो. जे ईश्वर जीवोने इष्ट स्थानकमां राखी मूकीने क्रियाबसरे मकट करे ते तो अमारा जेवो अवसरे नहि मळवाना