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दोष लागशे नहि. एतो ब्रह्मनी लीला छे माटे संहार करतां ब्रह्मने पाप न लागे एवं जो कहे होय तो मृगयाए (शिकारे) गयेला राजाने पण जीवो मारतां पाप नहि लागे. स्वभावथी अथवा कालथी प्रेराइने सृष्टिनो संहार करतां विभुने पाप लागतुं न होय अने आ अशस्त संहारमा बलिष्ठ स्वभाव अने काळ ब्रह्मने प्रेरता होय तो सृष्टिसंहारमा स्वभावने अने काळने ज हेतु रहेवा घो. युक्तिमा न बेसे एवा ब्रह्मनु शुं काम छे ? जे लोको सृष्टि रचवानुं अने संहार करवान ब्रह्ममां आरोपेछे ते ब्रह्मनो महिमा प्रकट करता नथी परंतु निर्दपणमां दषणनो आरोप करेछे. ब्रह्मने निष्क्रिय कहीने तेनेज पार्छ जगत् रचनार कहेवू ते ‘मारी मा वांझणी छे' एना संश छे. जे कोइ विज्ञानवंत छे ते सर्व ब्रह्मनु चिन्तन करेछे. जो तेओ ब्रह्मांश होय तो तेमनामां अने ब्रह्ममां शो भेद छे ? तेओ शेने माटे चिन्तन करेछे ? ए जीवो ब्रह्मांश हशे तो ब्रह्म पोतेज तेमने पोतानी पासे विना परिश्रमे लेइ जशे. जो ब्रह्मनी प्राप्ति माटे नीरागता, निःस्पृहता, निवता, निष्क्रियता, जितेन्द्रियता अनेसमानता इत्यादि करवा योग्य होय अने जो ब्रह्मनी एमांज प्रीति होय तो ब्रह्ममा निष्क्रियत्व सिद्ध थयु. जो एम कहेवामां आवे के ब्रह्मनो स्वभावज एवो सक्रिय निष्क्रियादि छे तो कत्र्ताना अनेक स्वभावने लीधे कदाचित् एनामां अनित्यता पण थाय ! द्वेष पण थाय ! राग पण थाय ! दृष्टिथी पण ए देखाय ! ब्रह्म नित्य छ एवी *पंचावयव वाक्यथी करेली व्याप्ति पण नहि थाय ! नित्य तेज छे जे एकरूप छे, जेमके आकाश. सृष्टि रचवामां अने युगांते
* १ ब्रह्म नित्य छ, २ एकस्वभावत्व होवाथी. ३ जे एक स्वभाववालं होय ते नित्य, जेमके आकाश. ४ ब्रह्म तेवु छे. ५ माटे ब्रह्म नित्य छे.