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(११०) जैनतत्त्वादर्श. टिनी अवखापिनीश्रादि विद्यानाधारक चोर हता, अनाथ कालमा तेवी विद्या तो नथी तो शु चोरी करनारने हाल चोर न केहेवा जोश्य ? ॥३॥ पूर्वकालमां चौदे पूर्वना पठन करनारने गीतार्थ केहेता हता, तो श्रा कालमा जघन्य श्राचारप्रकल्प निशीथ, अने मध्यम आचारप्रकल्प बृ. हत्कल्पनां अध्ययन करनारने शुं गीतार्थ न केहेवा जोश्य ? ॥४॥ पूर्वकालमां श्रीथाचारांगनुं शस्त्रप्रज्ञा अध्ययन जणवाथी, बेदोपस्थापनीय चारित्रमा स्थापन करता हता, तो शुं हाल दशवैका विकनुं ब जीवनीय अध्ययन जणवाथी स्थापन न करवा जोश्य ? ॥५॥ बीजा ब्रह्मचर्यना पांचमाउद्देशामां जे आमगंधी सूत्र ने ते सूत्रने अनुसार पूर्व मुनि श्राहारग्रहण करता हता, तो शुं हाल पिंषणा अध्ययन अनुसारे न ग्रहण करी शके ? ॥६॥ पूर्व प्राचारांग पली उत्तराध्ययन जणता हता तो शु हाल दशवैकालिक पड़ी न अध्ययन करी शके ? ॥७॥ पूर्व मत्तांगादि दशप्रकारना वृक्ष हता, तो शुं हाल आंबादि वृद न केदेवा जोश्य ? ॥ ॥ पूर्वे बहु गायोना समूहवाला नवगोपने गोवाल केहेता हता, तो शुं हाल थोडी गायोवालाने गोवाल न केहेवा जोश्य ? ॥ए॥ पूर्वे सहस्रमक्ष योछा हता, तो शुं हाल कोश्ने योको न केहेवो जोश्यें ? ॥ १०॥ पूर्वे बमासी तपनुं प्रायश्चित्त हतुं तो तेने बदले हाल नीवी प्रमुखनुं प्रायश्चित्त न बेद् जोश्य ? ॥ ११ ॥ एवी रीतें जो पूर्वकालना मुनियोनी वृत्ति हाल नथी तो अ॒ तेने श्राचार्य श्रथवा साधु न केहेवा जोश्य ? परंतु जरुर साधु मानवा जोश्य. तथा जीवानुशासन सूत्रनी वृत्तिमां पण लख्यु डे के पांचमा कालमां साधु पूर्वोक्त प्रकारना होय तो पण ते ने संयमी केहेवा जोश्ये. तथा निशीथमां पण लख्युं २ ॥ नाष्यगाथा ॥ जासंजमया जीवे, सुतावमूले गुणुत्तर गुणाय ॥ इत्तरियजेय संजम, नियंठव सा पडिसेवी ॥१॥श्रा गाथानी चूर्णीनो अर्थः- बकायना जीवो विषे ज्यां सुधी दयाना परिणाम हशे, त्यां सुधी बकुश निग्रंथ तेमज प्रतिसेवना निर्यथ रहेशे, ते कारपथी प्रवचनशून्य तेमज चारित्ररहित, पंचमकाल कदापि नहि होय ? वली मूलउत्तर गुणोमा दूषण लागवाथी चारित्र तत्काल नष्ट पण थतुं नथी. मूलगुणजंगमां बे दृष्टांत डे, उत्तरगुणजंगमां मंपर्नु दृष्टांत डे.