Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 316
________________ नवम परिवेद. (1 ) रदेवं, चंडिकाअने सूर्यना मंदिरनी सन्मुख न रहेवं, महादेवनी तो कोश पण बाजुये रहेवू नहि. कृष्णनी डाबी बाजुये अने ब्रह्मानी जमणी बाजुये न रहे. स्नान- पाणी, ध्वजानी बाया अने विलेपन वर्जे. जिनमदिरना शिखरनी गया अने अरिहंतनी दृष्टि पडे त्यां वास न करवो. न. गर तथा गामनी इशान खुणमां घर न बनावे; बनावे तो ऊंची जातिवालो कुःख पामे. घर बनावे तो वेचनारने पूरी किंमत आपे. पाडोशीने पुःख न आपे, घर लेती वखत कोश्ने कुःख न श्रापे, काष्ठ, पाषाण, इंट प्रमुख वस्तु निर्दोष, दृढ, मजबुत अने नवीन होय ते वाजबी मूल थापीने से, वेचा. ती वस्तुउनुं योग्य सूल आपे, परंतु पोते इंट, चुनो पकाववानुं न करे, जिनप्रासादनी इंट प्रमुख न ग्रहण करे. शास्त्रमा कडं जे के, देरासर, कुवा, वाव, स्मशान, मठ अने राजाना मंदिर, तेना काष्ट, पबर, इंट प्रमुख सर्व गृहस्थना घरमां वपराय तो विरोधकारी , श्रने धर्मना स्थानमां वपराय तो सुखदायक बे. पाषाणमय घरमां काष्ठनो स्थंज अने काष्ठमय घरमा पाषाणनोस्थन न बनावे, मंदिरमां पण न बनावे. हलका काष्ठ, कोल्हानाकाष्ठ, अहंटनाकाष्ठ, चरखानाकाष्ठ, कांटावाला वृक्षनाकाष्ठ, पंच उंबरनाकाष्ठ, आ सर्व काष्ठ घरमां न वापरे. बीजोरा, केला, दाडम, जंबीर, आंबली अने धत्तुराना काष्ठ पण वर्जे.आ वृदोनां मूल पडो कोशमाथी घरमा प्रवेश करे, वा तेउनी बाया घरमां पडे तो कुलनो नाश करे. पूर्व दिशितरफ घर उंचुं होय तो धननो नाश थाय, दक्षिण दिशिये उंचं होयतो धननी वृ. कि थाय, पश्चिम दिशिये उचुं होय तो धनादिनी वृद्धि थाय, अने उत्तरदिशि तरफ ऊंचुं होय तो उजाड थाय. जे घर गोल होय, बहु खुणावालुं होय, अथवा एक, बे वा त्रण खुणावायूँ होय, अने दक्षिण वामी तरफ लांबु होय, एवा घरमां वास न करवो. जे घरनां घार खयमेव उघडे वा बंध थाय ते घर सुखकारी नहि. घरना कार उपर कलशादि चित्र होय तो शुज डे, श्रने नाटारंज, महानारत तथा रामायणना युझ, राजाऊना युद्ध, शषिर्जना चरित्र, देवचरित्र, या चित्रो घरमां शुज नथी; तथा फल वृक्ष, पुष्प वेल, सरख

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