Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 320
________________ दशम परिछेद. (YPP) तमाससुधी सचित आहार वर्जे. आठमी प्रतिमा. आठ माससुधी पोते श्रारंभ न करे. नवमीप्रतिमा. नवमाससुधी बीजा पासे पण आरंभ करावे नहि. दसमी प्रतिमा, दस मास सुधी कुरमुंडित रहे, अथवा श्रल्प चोटली राखे. घरमांकां धन होय, छाने घर मांदेना को पुढे त्यारे कहे के हुं जाएं ढुं, ने जो न होय तो कहे जाणतो नथी, बाकी घरनुं सर्व काम वर्जे, पोताने निमित्ते घरमा जे आहार कर्यो होय ते पण न खाय. गरमी प्रतिमा. अगीयार माससुधी घरनो संग त्यागे, लोच करे, अथवा कुरमुंडित रहे, रजोहरण, पात्राप्रमुख लइ, मुनिनो वेष धारण करी स्कुलमा निक्षा लदे. मुखश्री एम कहे. “प्रतिमा प्रतिपन्नाय श्र मणोपासकाय निक्षां देहि " या प्रमाणे वचन बोले, परंतु धर्मलान शब्द न कहे. सर्व रीतिये साधुनी जेम प्रवर्ते. १० आराधना द्वार. अंतकाल समये श्रावक दश प्रकारनी आराधना के जेनुं स्वरूप गल कथन करवामां आवे छे ते, तथा संलेषणादि विधिपूर्वक करे. श्रावक ज्यारे सर्व धर्मऋत्यो करवाने अशक्त थाय, अने पोतानुं मरण पासे जाणे, त्यारे द्रव ने जावथी संलेषणा करे. द्रव्य संलेषणा ते अनुक्रमें आहारनो त्याग करे, अने नाव संलेषणा ते, क्रोधादि चारे कषायनो त्याग करे. पोतानुं मरण निकट बे एम श्र लक्षणोथी जाणे. ९ बुरा स्वप्न आता होय, २ प्रकृति, स्वनावमां फेरफार थयो होय, पुर्निमित्त मलतां होय, ४ मोठा ग्रहनो योग थयो होय ५ आत्म आ चरण विकृति पाम्या होय, वा कोइ देवतानी सहायथी जाणवामां श्रावे. जे द्रव्यथी तथा नावथी संलेषणा न करे, अने अनशन करी दे, तो तेवा जीवने प्रायः दुर्ध्यान थवाथी कुगति थाय बे, ते कारणथी संलेषणा अवश्य करे. पी धर्मना उद्योत वास्ते संयम अंगीकार करे. एक दि. वस पण दिक्षा ग्रहण करी संयम पालवामां आवे तो स्वर्ग प्राप्त थाय बे. जेम नल राजाना जाइ कुबेरना पुत्र सिंहकेशरीए मात्र पांच दिवसनी दिक्षार्थी केवलज्ञान प्राप्त कर्यु ने मोद गया; तथा हरिवाहन रा जाए पोतानुं श्रायुष्य मात्र नव प्रहर बाकी जाणी दिक्षा लीधी अने सर्वार्थसिद्ध विमाने गया. श्रावक दिक्षा श्रवसरे तेमज संथारा समये प्रजावना वास्ते यथाशक्ति धन खरचे. जेम थिरापद्रीय संघपति -

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