Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala
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(५३६)
जैनतत्त्वादर्श. श्री शीतलनाथजीनुं शासन पण विछेद गयु. तेवीज रीते पंदरमा तीर्थंकरसुधी सात तीर्थंकरोनां शासनो विछेद गयां, अने मिथ्याधर्म बहुज वृद्धि पाम्यो.
श्रीशीतलनाथ पनी सिंहपुरी नगरीमा श्वाकु वंशी विष्णु राजानी विष्णुश्री नामाराणी, तेना पुत्र श्री श्रेयांसनाथ नामना अगीधारमा तीर्थंकर थया. ते समयमां वैताढ्य पर्वतश्री श्रीकंठ नामनो विद्याधरनो पुत्र, पद्मोत्तर विद्याधरनी पुत्रीनुं हरण करी पोताना बनेवी राक्षस वंशी लंकाना राजा कीर्तिधवलने शरणे गयो. कीर्तिधवले त्रणसे योजन प्रमाण वानरहीप तेजने रहेवाने श्राप्यो. तेहुना संतानोमांथी चित्र विचित्र विद्याधरोये विद्याथी वानरर्नु रूप बनाव्यु. वली वानर द्वीपमा रहेवाथी तथा वानरनुं रूप बनाववाथी वानरवंशी प्रसिद्ध थया. तेउनी उलादमा वाली तथा सुग्रीवादि थया .
श्रेयांसनाथजीना समयमा पेहेला त्रिपृष्ट नामना वासुदेव हरिवंशमां थया. तेनी उत्पत्ति प्रमाणे- पोतनपुर नगरमां हरिवंशी जीतशत्रु नामनो राजा थयो. तेने धारणी नामा राणी हती. तेने श्रचल नामनो पुत्र श्रने मृगावती नामनी पुत्री थ. मृगावती अत्यंत खुब सुरत हती, ते यौवनवंती थर एटले तेना पिताये तेणीने पोतानी राणी बनावी बीधी. ते देखी लोकोये जीतशत्रु राजानु नाम प्रजापति पाड्यु. अर्थात् पोतानी पुत्रीनो पति एवं नाम राख्यु. तेज वखतथी वेदोमां आ श्रुति लखवामां आवी. “प्रजापति वैखाइहितरमन्यध्याय दिव नित्यन्य आहुपुर समित्यन्येता मृश्योजूत्वा तदसावादित्यो जवत्" ॥ जावार्थःप्रजापति ब्रह्मा पोतानी पुत्री साथे विषय सेवनने प्राप्त थता हवा. जैनमतवालाउने श्रा अर्थथी कां पण हानी नथी; परंतु जे लोकोये ब्रह्माजीने वेद कर्ता, हिरण्यगर्जना नामथी इश्वर मानेला बे, अने श्रा कथाने पुराणोमां लखे
ली , तेउनी फजेती तो अवश्य बीजा मतवाला करशे. तेमां अमे शुं · करीये? कारण के जे पुरुष पोताना हाथथी पोतानुं म्हों काबुं करे, तेने देखीने बीजा केम हांसी न करे ? यद्यपि मीमांसाना वार्तिककार कुमारिले था श्रुतिना अर्थन कलंक दूर करवावास्ते मनमानी कल्पना करेली बे, तथा वर्तमानमां दयानंदसरखति खामिये पण वेद श्रुतियोना कलंक

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