Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 358
________________ द्वादश परिच्छेद. (YUG) दुःखी राजगृह नगर बोडी तेणे चंपानगरी पोतानी राज्यधानी बनावी, अने त्यां रहेवा लाग्यो: तो पण पितानी सेवा माराथी घर नहि पितानुं कार्य मोत थयुं. एवा वारंवार विचार याववाथी तें बहुज दुःखमा रहेवा लाग्यो, पढी मंत्रीए एकमत करी प्रछन्नपणे एक पुस्तक बनाव्युं, तेमां एवं कथन लखाव्युं के, जे पुत्र पोताना मरण पामेला पिताने वास्ते, पिंडप्रदान, वस्त्रजोड, आभूषण, शय्या प्रमुख ब्राह्मणोने पे, ते सर्व श्राद्धादि सामग्री तेना पिताने प्राप्त थाय बे. या पुस्तकने घुमाडावाला मकानमां राखी घुमाडाथी प्राचीन (जुना) पुस्तकजेवुं बनावी दीघुं. पठी या पुस्तक कोपिक राजाने संजलान्युं. कोषि पण पितानी जति वास्ते पिंडप्रदानादिमां बहुज धन वापर्यु. त्यारथीज मरीगयेला पाबल पिंडप्रदान श्राद्धादि प्रवृत्त थयेल डे. जगत्मां पण प्रसिद्ध बे के कर्ण राजाये श्राद्ध चलावेल बे, ते याज कोपिक राजानुं नाम लोकोए कर्ण राजा करी लखी दीधुं बे. हवे प्रयाग तीर्थनी उत्पत्ति लखीए बीए. यन्निकासुत जैनाचार्य श्रत्यंत वृद्ध श्रइ जतां, गंगानदी उतरतां केवलज्ञान पाम्या, छाने ज्यां प्रयाग बे, त्यां पोतानुं शरीर बोडी मुक्ति पाम्या, ते स्थले देवतार्जए मुनिनो निर्वाण महोत्सव कर्यो, त्यारथी प्रयाग तीर्थनो महिमा थयो. महावीर स्वामिना वखतमां जे राजा प्रमुख तथा व्यवहारा दिनुं स्वरुप हतुं, तथा जैनमतनो विस्तार इतो ते सर्वनुं स्वरूप यावश्यकसूत्र, वीरचरित्र, वृहत्कल्पादि शास्त्रोथी जाणवुं. श्री महावीर स्वामिना समयमां राजगृह नगरमां श्रेणिक राजा थया. तेनी पाल कोपिक, श्रेणिकना मरण पढी कोणिके चंपानगरी वसावी, अधिकार पूर्वेकह्योः हवे को शिकना मरण पढी तेनो पुत्र उदायी राजा थयो, ते कोकिनी पाउल तेना भरण पढी उदास थवाथी चंपा बोडी पाडलीपुत्र ( पटना ) वसावी पोतानी राज्यधानी करतो हवो. श्री महावीर जगवंत विक्रम संवतथी ( 999 ) वर्ष पहेलां पावापुरी नगरीमां हस्तिपाल राजानी पुरातन राज्यसनामां बहोंतेर वर्षनुं श्रायुष्य जोगवी कार्तिक वदी श्रमावास्यानी रात्रिए पाउले प्रहरे पद्मासने बैठा था शरीरादि शेष चारे कर्मनी सर्व उपाधी बोडी निर्वाण

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