Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 364
________________ (५०) जैनतत्वादर्श. १ बकुल, २ बलिस्सह, बलिस्सहना शिष्य श्री उमास्वातिजी थया, जेमणे तत्त्वार्थादि सूत्रनी रचना करी, उमास्वातिजीना शिष्य श्यामाचार्य, जेमणे पन्नवणा सूत्रनी रचना करी, आ श्यामाचार्य श्री महावीर पनी त्रणसो बोतेर वर्षे स्वर्गे गया. आर्यमहागिरिजी त्रीस वर्ष गृहवास, चालीस वर्ष व्रतपर्याय, त्रीस वर्ष युगप्रधान पदवी, सर्व आयु एकसो वर्षनुं जोगवी स्वर्गे गया. श्रीसुहस्तिसूरिये एक भिखारीने दीदा आपी, ते निखारी काल करी चंडगुप्तना वंशमां तेना पुत्र विसार, विंडुसारनो पुत्र अशोक, अशो'कनो पुत्र कुषाल, कुणालनो पुत्र संप्रति नामनो राजा थयो. संप्रति राजाये जैनधर्मनी बहुज वृद्धि करी. श्री कल्पसूत्रना प्रथम उद्देशामां श्री महावीरस्वामिना समयमां वर्तमान समय सरखावतां बहु थोडा देशोमां जैनधर्म लखेल . मारवाड, गुजरात, दक्षिण, पंजाब विगेरे देशोमां जे जैनधर्म प्रवः बे, ते संप्रति राजाना समयबीज प्रवर्ते बे. यद्यपि वर्त्तमानमां जैनी राजा नही होवाथी जैनधर्म सर्व स्थले नथी, परंतु संप्रति राजाना समयमांजैनधर्म नारत वर्षमा सर्वत्र हतो, तथा उन्नतिपर हतो, कारण के संप्रति राजानुं राज्य मध्य खंड तथा गंगा अने सिंधुपार सर्व देशोमां हतुं. संप्रति राजाये धर्मवृद्धिमाटे पोताना नोकरोने जैनसाधुः वनावी, पोतानी आज्ञा माननारा राजाशक, यवन, फारसादि देशोमां हता, ते देशोमां पण मोकल्या हता. तेये ते राजा ने जैनना साधुर्जना आहार, विहार, आचारादि सर्व वताव्या हता,तेमज समजाव्या हता. वाद साधुऊनो विहार ते देशोमां करावी ते देशना लोकोने जैनधर्मी कर्या हता. संप्रति राजाये ( एए) नवाणुं हजार जीर्णोद्धार जिनमंदिरोना कराव्या; तथा (२६०००) बवीस हजार नवा जिनमंदिरो बंधाव्यां; सोना, चांदी, पीतल, पाषाण प्रमुखनी सवाकोड प्रतिमा बनावी. तेमना वनावेला मंदिर, नाडोल, गीरनार, शत्रुजय, रतलाम प्रमुख अनेक स्थले असे देखेल . संप्रति राजानी प्रतिमा तो अमे सेंकडो दीती ठे. संप्रति राजानुं संपूर्ण वृत्तांत परिशिष्ट पर्वादि ग्रंथोथी जाणवू. सुहस्ति सूरिए उडायननी रेहेनारी नसा शेगणीना पुत्र अवंतीसुकमालने दीक्षा आपी. जे स्थले अवंतीसुकमाले काल कों, ते स्थले

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