Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 355
________________ (५५४) जैनतत्त्वादर्श. त्यकीने जूल थापमा पाडवावास्ते त्रण नगर बनाव्यां, सत्यकीये विद्याथी त्रणे नगरने सलगावी दीधां. बेवटे कालसंदीपक नासीने लवण समुजना पाताल कलशामा चाल्यो गयो. सत्यकीये त्यां जश् कालसंदीपकने मारी नांख्यो. पनी सत्यकी विद्याधर चक्रवर्ती थयो, त्रण संध्यासमये सर्व तीर्थकरोने वंदना करी नाटक करतो हवो. जेथी ईझे सत्यकीखें नाम महेश्वर पाड्युं. महेश्वर (सत्यकी) ने बे शिष्यो थया. एक नंदीश्वर, बीजो नादीया. नादीयाने विद्याना बलश्री बलद बनावी लेवामां श्रावतो, अने तेना उपर बेसी महेश्वर अनेक क्रीडा, कुतुहल करतो हतो. महेश्वर श्रीमहावीर जगवंतनो अविरति सम्यग्दृष्टि श्रावक हतो, परंतु अत्यंत कामी हतो, अने ब्राह्मणोनी साथे तेने बहुज वेर हतुं, तेथी विद्याना बलथी तेणे सेंकडो ब्राह्मणोनी कुमारी कन्याउँने विषयसेवन करी बगाडी हती. अनुक्रमे वीजा लोकोनी तथा राजा प्रमुखथी वहु तथा पुत्रीउनी साथे ते विषय सेवन करवा लाग्यो, परंतु तेनी विद्याना जयथी कोइ तेने कांश पण कही शकतुं नहोतुं. जे कोइ तेनी आडे श्रावतो,ते मार्यों जातो हतो. महेश्वरे विद्याना बलथी एक पुष्पक नामनुं विमान बनाव्यु, तेमां वेसी पोतानी श्छा मुजब फरतो हतो. ए प्रमाणे तेनो काल व्यतीत थतो हतो. एकदा महेश्वर उजायनी नगरीमां आव्यो. त्यां चंप्रद्योत राजानी शिवा नामनी राणी शिवाय बीजी सर्वे राणीउनी साथे तेणे विषय जोग कों. वीजा लोकोनी वहु, पुत्री प्रमुखने पण बगाडवा लाग्यो; जेथी चं प्रद्योतने अत्यंत चिंता थवा लागी. तेणे विचार कर्यों के एवो को उपाय करीये के जेथी महेश्वरनो विनाश थर जाय; तेनी विद्याने लीधे कां पण उपाय चाल्यो नहि. हवे ते नगरमां उमा नामनी एक अत्यंत रुपवंत वेश्या रहेती हती. तेनो एवो नियम हतो के जे कोश तेने अमुक संख्यातुं धन आपे, ते तेनी साथे विषय सेवन करे. एकदा महेश्वर ते वेश्याने घेर गयो. वेश्याये तेने आदर सत्कार करी तेनी सन्मुख बे फूलो राख्यां, एक खिलेढुं, अने बीजुं खिल्याविनानु. महेश्वरे खिलेला फूल तरफ पोतानो हाथ पसार्यो, त्यारे उमाये खिट्या वगरनुं फूल महेश्वरना हाथमा आप्यु, अने कह्यु के श्रा फूल (कमल) तमारा योग्य .. महेश्वरे पुन्ह्यु के श्रा कमल मारा योग्य केम ? त्यारे उमाये कयु के श्रा

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