Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 352
________________ द्वादश परिच्छेद. (uuz) जीने पूर्णब्रह्म परमात्मा इश्वरादि अनेक नामोथी लखी तेमनी स्तुति करवा लाग्या. ज्यारथी बलनद्रजीए कृष्णनी पूजा करावी, त्यारश्रीज लोकोए कृष्णनो इश्वरावतार मान्यो होय, एम केम न होय ? लौकिक शास्त्रोमा कृष्णने थयाने पांच हजार वर्ष थयां बे, छाने उपर मुजबना वृत्तांतने पण पांच हजार वर्ष थयां बे. ते बने तपासतां उपर मुजब बन्यानी हकीकत साची साबीत थाय बे. बावीसमा छाने वीसमा तीर्थंकरना अंतरमां बारमा ब्रह्मदत्त नामना चक्रवर्ती थया. त्यार पढी वाणारसी नगरीमां इक्ष्वाकु वंशी - श्वसेन राजा थया. तेनी वामा राणीना पुत्र श्री पार्श्वनाथ नामना देवीसमां तीर्थंकर थया. त्यार पढी क्षत्रियकुंड नगरमां इक्ष्वाकुवंशी सिद्धार्थ नाममा राजानी त्रिसला राणीना पुत्र श्री वर्द्धमान ( महावीर ) खामि चोवीसमां चरम तीर्थंकर थया. जरतखंडमां वर्त्तमानमां जैनमत जे प्रचलित बे, ते महावीरखामिना शासनथीज चाले बे, अने जे शास्त्रो रचायेलां बे, ते सर्वे तेमना उपदेश अनुसारेज रचायेलां बे. श्री महावीरखामिनुं सर्व वृत्तांत जोखुं होय तो आवश्यक सूत्रवृत्ति, कल्पसूत्रवृत्ति तथा महावीरचरित्रादि ग्रंथोथी अवलोकन कर. इति श्री तपगछीय मुनि श्री गणि मणिविजय तविष्य मुनि बुद्धिविजय तविष्य मुनि श्रात्माराम आनंद विजय विरचिते जैनतत्त्वादर्श श्री रीषजादि महावीर पर्यंत पूर्ववृतांतनिरुपणनाम एकादश परिछेदः समाप्तः ॥ ११ ॥ ॥ अथ द्वादश परिछेद प्रारंभः ॥ या परिछेदमां श्री महावीर स्वामिथी वर्त्तमान समय सुधिनुं वृत्तांत लखीए बीए. श्री महावीर जगवानना अम्यार शिष्य मुख्य हता. सर्व साधु शिष्यो चौद हजार हता. ते मां ११ मुख्य हता. तेमना नाम. १ इंद्र जूति, ( गौतमखामि ) २ अभिभूति, ३ वायुभूति, ४ व्यक्तस्वामि, २ सुधर्मास्वामि, ६ मंडितपुत्र, मौर्यपुत्र, छ अवकंपित, ए अचलाता, १० मैतार्य, श्री जगवानथी दीक्षित, बत्रीश हजार साध्वी थइ.

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