Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 335
________________ एकादश परिवेद, (५१) पिप्पलाद मीमांसक मतनो मुख्य श्राचार्य थयो. तेनो बातली नामा शिष्य थयो, त्यारथी जीवहिंसा संयुक्त यज्ञ प्रचलित थया. ___ याज्ञवल्क्ये नवा वेदो बनाव्या बे, तेमां कांश पण शंका नथी, कारण के वेदमां लख्यु के के “ याज्ञल्क्येती होवाच” अर्थात् याज्ञवल्क्य आ प्रमाणे कहेता हवा. वेदमां जे शाखाउँ डे ते वेद कर्ता शषियोना अधिकारनी ने तेथी आवश्यक सूत्रमा जे लख्यु डे के जीवहिंसा संयुक्त जे वेद बे, ते याज्ञवल्क्य अने सुलसा आदिये बनाव्या बे, ते वात सत्य बे, कारण के केटलीएक उपनिषदोमां पिप्पलादनुं नाम , अने केटलाएक स्थले बीजा झषियोनां पण नामो . जमदग्नि कश्यप तो वेदोमां खास नामथी लखेल बे. हवे विचारो के वेदो नवा बनाववामां आव्या तेमांशु शंका रहे ? __वली लंकानो अधिपति राजा रावण, ज्यारे दिगविजय करवा वास्ते देशोमां चतुरंगी सेना साथे बीजा राजाउने पोतानी आज्ञा मनाववा फरतो हतो, ते अवसरे नारदमुनि लाकडी प्रमुखना मारथी कुटाया होवाथी पोकार करता रावणनी पासे श्राव्या. रावणे नारदजीने पुब्यु के तमने कोणे मार मार्यो, त्यारे नारदजीये कह्यु के, राजपुर नगरमा मरुत नामनो राजा बे, ते मिध्यादृष्टि ने, अने ब्राह्मणाजासोना उपदेशथी यज्ञ करवा लाग्यो,ते समये शिकारीउनी जेम होमने वास्ते ते ब्राह्मणाजासोने, अरराट शब्दो करता पशुजने यज्ञोमां होमवावास्ते मारतां में दीग. आकाशथी उतरी मरुत राजा ब्राह्मणोनी साथे बेगे इतो, त्यां आवी, मरुतराजाने में कडं के था तमे सर्वे शुं काम करवा लागी रह्या बो? मरुतराजाए कह्यु के ब्राह्मणोना उपदेशथी देवताउँनी तृप्तिवास्ते तेमज स्वर्ग प्राप्तिवास्ते पशुऊना बलिदानथी था यज्ञ करवो शरु कयों बे, या प्रमाणे यज्ञ करवो ते महा धर्म . पड़ी में कडं के हे राजा ! चारे वेदोमा जे प्रमाणे यज्ञ करवातुं कथन करेल , ते यज्ञ करवानी. विधि तमने कहुं बुं ते सांजलो? आत्मा यज्ञनो यष्टा अर्थात् करनार , तप रूप अग्नि ने, ज्ञानरूप घी , कर्मरूप इंधन डे, क्रोध,मान, माया, लोनादि पशु बे, सत्यवचनरूप यूप अर्थात् यज्ञस्थंज बे, सर्व जीवोने । अनयदानरूप दक्षिणा ,अने ज्ञान दर्शन चारित्र रत्नत्रयीरूप त्रिवेदी

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