Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala
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(५२)
जैनतत्त्वादर्श. बे.आप्रमाणे यज्ञ वेदमां कथन करेल , एवो यज्ञ जो योगाच्याससंयुक्त करवामां आवे तो ते करनारो मुक्ति प्राप्त करे थे; परंतु राक्षसरूप थर बकराप्रमुखने मारी यज्ञ करवामां आवे तो, यज्ञ करनार, करावनार, मरीने घोर नर्कमां चिरकाल महाकुःख जोगवे . हे राजा! तुं उत्तम वंशमां उत्पन्न थयेल बो, बुद्धिमान् तेमज धनवान् बो, तेथी श्रा व्याधोचित पापथी निवर्त. जो प्राणीवधथीज जीवोने खर्ग प्राप्त थतुं होत तो अनायासे थोडा वखतमांज था जीवलोक खाली थर जशे.श्रा मारा वचनो सांजली यानी अग्मिनी जेम प्रचंड श्रयेला ब्राह्मणो लाकडी, सो. टा, ढीका, पाटु मने मारवा लाग्या, तेथी जेम नदीना पूरथी जय पामेलो माणस उंची जमीन उपर चडी जाय , तेम दोडतो हुं तमारीपासे श्राव्यो ढुं. हे रावण महाराज! निरपराधी पशुङ मार्या जाय . तेर्नु रक्षण करवामां तमे समर्थ बो. जेम तमारां शरणथी हुँ निर्जय बुं तेम पशुजने शरण श्रापी निर्जय करो, ते सांजली रावण विमानथी उतरी मरुत राजानी पासे आव्या, मरुत राजाये रावणनी नक्ति तथा आदर सन्मान उत्तम प्रकारे काँ. रावणे कडं था तमे शुं करो डो? यज्ञमां पशुवध करी नर्कनी महा माठी गति उपार्जन करवानुं तमोए आरंन्युजे. धर्म तो तीर्थंकर महाराजाये अहिंसारूप कथन करेलो , अने तेथीज जगत्, हित थाय ; ज्यारें पशुउँने मारवामां तमे धर्म समज्या, त्यारे अधर्म, धर्मनी तमने समजणज क्या परी? माटे आ काम तमे तजी यो.. पबी सेहेज कोपमा श्रावी रावणे कडं के जो यज्ञ करवानुं काम तजी नही द्योतो तेनुं फल था लोकमां तो तमने हमणांज श्रापीश, अने परलोकमां तमारे नर्कना मेमान थर्बु पडशे. आवा लयात्मक वचन सांगली मरुत राजाये यज्ञ करवो तजी दीधो, कारण के रावणनी श्राज्ञा ते वखते एवी जयंकर हती के तेनुं को उलंघन करी शकतुं नही. श्रा कथाथी एम पण सिह थाय बे के, ब्राह्मण लोको जे एम कहे जे के, पूर्वे राक्षसो यज्ञविध्वंस करता हता, ते कोण जाणे रावणादि जबरदस्त जैनधर्मी राजाध्ये पशुवधरूप यशो करता बोडावी दीधा होय; श्रने तेज कालथी ब्राह्मणोये पुराणादि शास्त्रोमां तेजवरदस्त जैनराजाने राक्षसो लखेला . वली एम पण सांजलवामां आव्यु डे के नारदजीये मायाना
जानी पापी निर्भय कम तमारां शरण मार्या जाय के.

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