Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 332
________________ (U2G) जैनतत्त्वादर्श. त्यारे लोको तेने माइन माइन कड़ेवा लाग्या. जैनमतना शास्त्रोमां प्राकृत जाषामा हाल पण ब्राह्मणोने माहन शब्दधी लखेल बे; संस्कृत ब्राह्मण शब्द बे, ते प्राकृत व्याकरणमां बंजण तेमज माहणना स्वरूपथी सिद्ध थाय बे, श्री अनुयोगद्वार सूत्रमां ब्राह्मणोना नाम “ बुद्ध सावया " अ र्थात् वडा श्रावक लखेल बे. ए प्रमाणे ब्राह्मणोनी उत्पत्ति बे, ते बाह्मणो पोताना पुत्रोने साधुर्जने आपता हता, छाने जे दीक्षा लेता न हता, ते व्रतधारी श्रावक यता हता; श्रा रीति जरतना राज्यमां हती. भरत महाराजना पुत्र श्रादित्ययशा थया, अर्थात् सूर्ययशा थया, जेना वंशजो जरतक्षेत्रमां सूर्यवंशी कहेवाय बे. बाहुबलीना मोटा पुत्र चंजयश थया, तेना वंशजो चंद्रवंशी कदेवाय बे. श्रीरीषनदेवजीना कुरुवंशी कदेवाय बे, जेर्जमां कौरव पांडव थयेला बे. ज्यारे सूर्ययशा सिंहासन उपर बेठा, त्यारे तेनी पासे काकणी रत्ननहोतुं. काकणीरत्न चक्रवर्ती शिवाय वीजा कोइ पासे होतुं नथी. ते कार. थी सूर्ययशा राजाये ब्राह्मण श्रावकोना गलामां सुवर्णमय यज्ञोपवीत दाखल करावी, जे भाषामां जनोइ कदेवाय बे. जोजन प्रमुख सर्वे, जरत महाराजनी जेमतेने श्रापता रह्या. सूर्ययशना पुत्र महायश गादी उपर बेठा, तेथे रूपानी यज्ञोपवीत बनावी थापी बाद तेजना वंशजो रेशमी यज्ञोपवीत थापता हवा. बेवढे सादा सूतरनी बनाववामां श्रावी. श्रा प्रमाणे यज्ञोपवीतनी उत्पत्ति बे. . जरतमहाराजनी व पाट सुधी तो ब्राह्मणोनी नक्ति भरतजीनी पेवेज यती रही. बाद प्रजा पण ब्राह्मणोने जोजन कराववा लागी. सर्व स्थले ब्राह्मणो पूजनीक गणावा लाग्या. ए प्रमाणे श्रावमा तीर्थंकर श्री चंद्रप्रन खामिना वखत सुधी सर्व ब्राह्मणो व्रतधारी जैनधर्मी श्रावको रह्या. श्रीचंद्रप्रन जगवाननी पछी केटलोएक काल व्यतीत थया बाद या जरतखंडमां जैनमत अर्थात् चतुर्विध संघ तथा सर्व शास्त्रो विछेद इ गयां, ते वखते ते ब्राह्मणानासोने लोको पुवा लाग्या के अमने धमनुं स्वरूप बतावो . ते वखते ब्राह्मणोये स्वमतिकल्पनाथी जेमां पोतानो लाज दीठो वो धर्म बताव्यो. अनेक ग्रंथो पण ते प्रमाणे बनाववामां श्राव्या. ज्यारे नवमा श्रीसुविधिनाथ ( पुष्पदंत) अरिहंत थया, त्यारे फरी

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