Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 328
________________ . दशम परिबेद. (५०) वजी गर्नमां पण मति, श्रुत, अवधि, एत्रज्ञान संयुक्त हता.श्रीरीषनदेवजीना पूर्व जवोनो वृत्तांत श्री आवश्यक सूत्र तथा प्रथमानुयोगश्री जाणवो. श्रीरीषनदेवजीये युगलक पुरुषोने कयु के जे राजा थाय ने ते दंड करे . राजा, मंत्री, कोटवालादि सेना संयुक्त होय बे, अने ते कृताजिषेक होय , अने तेनी आज्ञा अनतिक्रमणीय होय . एवा वचनो श्रीरीषजदेवजीना श्रवण करी मिथुनको बोल्याके एवो राजा अमारोपण नले था! श्रीरीषजदेवजीये कडं के जो तमारी एम वांबा होय तो नानिकुलकर पासे जर ते प्रमाणे याचना करो. मिथुनकोये नाजिकुलकरने ते प्रमाणे विनंति करी. नानिकुलकरे कडं के जारीषनदेव. जी तमारा राजा थया. पड़ी मिथुनको श्रीरीषनदेवजीनो राज्याभिषेक करवावास्ते पद्मिनी सरोवरमां गया. ते अवसरे अनुं श्रासन कंपायमान थयु. जे अवधिज्ञानश्री राज्याभिषेकनो अवसर जाणी अहींआ श्रावी श्रीरीषजदेवजीनो राज्याभिषेक कर्यो. मुकुटादि सर्व अलंकार जे राजाने योग्य हता ते पेहेराव्या. ते समये मिथुनक लोको पद्मसरोवरमांथी नलिनी कमलोमां पाणी लाव्या.तेयेावीने प्रजुनें अलंकृत दीग, त्यारे सर्व जनोये रीषनदेवजीना चरण कमल उपर जल रेडी दीधुं. मनमा विचार कयों के मिथुनको अति विनीत बे; तेथी वैश्रमणने श्राज्ञा करी के श्रा विनीतोने रहेवावास्ते विनीता नामा नगरी बनावो ? वैश्रमणे विनीता नगरी बनावी अने युगलीया तेमां वश्या. तेनुं स्वरूप श्रीशत्रुजयमहात्म्यथी जाणवू. संग्रह वास्ते श्रीरीषनदेवजीना राज्यमां हाथी, घोडा, गाय, बलद प्र. मुख वनमाथी पकडी लाववामां आव्या. श्रीरीषनदेवजीये चार प्रकारनो संग्रह कर्यों. १ उग्रा, ५ नोगा, ३ राजन्या, ४ क्षत्रीया. जेउँने कोटवालनी पदवी थापी ते दंड करनार होवाथी उग्रवंशी कहेवाया. जेऊने गुरु अर्थात् वडील तरीके उंचामान्या ते जोगवंशी कहेवाया. जेऊ श्रीरीषनवेवजीना मित्र थया ते राजन्यवंशी कहेवाया. बाकीनार्ड क्षत्रियवंशी कड़वाया. ज्यारे कल्पवृदोना फलोनो बजाव थयो त्यारे पक्काहार खावानो व्यवहार शीरीते शुरु भयो तेनो विचार लखीये डीये. कालना प्रजावथी

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