Book Title: Jain Tattvadarsha
Author(s): Vijayanandsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Atmaram Jain Gyanshala

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Page 296
________________ नवम परिवेद. (४५३) व्यवहार शुद्ध न करे, ते धर्मनी निंदा कराववाथी खपरने उर्वजवोधी करे; ते कारणथी व्यवहारशुद्धि अवश्य करवी जोश्ए. वली देशादि विरुफनो त्याग करे. देश, काल, राजविरुकादि परिहरे, श्रा कथन हितोपदेश मालानुसार करेल . जे पुरुष देश, काल, राज्य तेमज धर्मविरुष्क तजे, ते सम्यग् धर्मनी प्राप्ति करे . देशविरुद्ध आ प्रमाणे. मारवाड देशमां खेती करवी अने सोरठ देशमा मदिरा बनाववी, इत्यादि देशविरुष समजवू. वली जे जे देशमा जे जे कार्य शिष्टजनो अनाचरणीय माने ते ते कार्य ते देशमा करवां ते देशविरुक . जाति कुलादि अपेदाए जे अनुचित होय ते. पण देश विरुफ ने. ब्राह्मण जातिये सुरापान करवू ते जातिकुलविरुक बे, अने एक देशवालानी सन्मुख बीजा देशवालानी निंदा करवी ते देशविरुधबे. कालविरुफ था प्रमाणे. शीतकालमा हिमालय समीप गमन कर, उष्णकालमां आफ्रिका देशमा मुसाफरी करवी. वर्षातुमा मरुदेशमा गमन करवू, उकालमांअनाजसहित जंगलमां मुसाफरी करवी, राजार्जना परस्पर विरोधना वखतमां तथा धाड पाडुर्ज रस्तो रोकी बेग होय ते वखते मुसाफरी करवी, सांजनी वखते धनसहित प्रयाण करवं, इत्यादि स्थानकोमां, अति सामर्थ्य, सहाय तथा दृढबल विना गमन करे तो प्राणनाश तथा धननाशनो संजव जे. फागण मास पड़ी तलादिनो व्यापार, तल पीलाववा, तलादि नक्षण करवा, तथा वर्षास्तुमां शाक पत्रादि जाजी प्रमुख खावां तथा बहु जीवाकुल नूमिमां हल फेरववां, इत्यादि महादोषनां कारण . राजविरुफ था प्रमाणे. राजाना अवर्णवाद बोलवा, जेने राजा मान्य करता होय, तेउने न मानवा, राजाना वैरीउनी साथे मेलाप करवो, राजाना शत्रुर्जना स्थानमां लोजथी जवू, राजाना शत्रुऊनी साथे व्यापार करवो, राजाना काममा पोतानी श्वापूर्वक विधिनिषेध करवा. लोकविरुष्का प्रमाणे. नगर निवासीनी साथे प्रतिकूलपणे व. तवं, खामिजोद करवो, लोकोनी निंदा करवी, गुणवान् तेमज धनवाननी निंदा करवी, पोतानी बडा गावी, सरखनी हांसि करवी, गुणवान उपर मत्सर करवो, कृतघ्नपणुं करवं, बहुलोकोना विरोधी साथे सं

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