Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 15
________________ [११] श्रकारानुक्रमणिका का २२२ बोल नं. पृष्ठ / बोल नं० पृष्ठ EE४ (१४) अपरिग्रह (परि १७२ अकाममरणीय अ. ग्रह का त्याग) गाथा ११-१८१ (उ० अ०५) की १८३ (३६) अभयदान का ___ बत्तीस गाथाएं ४६ अर्थ क्या अपनी ओर ६७७ अतिशय चौतीस तीर्थ से किसी को भय न कर देव के ६८ देना ही है या अधिक१११३ ६६४ (१२) अदत्तादान ३ (१५) अभव्य जीव (चोरी) विरति कर कहां तक उत्पन्न गाथा ५ १७६ होते हैं। ११३ ७६ अनन्तरागत सिद्धों के 133)शा अल्प बहुत्व के तेतीस गाथा १० ६८ अस्वाध्याय बत्तीस १००७ अनाचीर्ण बावन ६६४ (१०) अहिसा-दया साधु के २७२ गाथा १७ १६७ ६६४ (२७) अनासक्ति गाथा १८ (१४) अनुत्तर विमान ६७ श्रागम पैतालीस में उत्पन्न जीव क्या १००५ आचारांग प्रथम नरक तिर्यश्च के भव श्रुतस्कन्ध के इकावन करता है? ११२ उद्देशे २०१ १८३ (७) अनुचर विमानवासी २ प्राचार्य के छत्तीस शंका होने पर किसे गुण पूछते हैं और कहां से? १०३ / ६६४ (४२) श्रात्मचिन्तन १०११ अन्तरद्वीप छप्पन २७७। । गाथा , घोल २०५३

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