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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला परिमाण स्कन्ध एक है । गुण, पर्याय और प्रदेश अनेक हैं । गुण अनन्त हैं । पर्याय भी अनन्त हैं । प्रदेश असंख्यात हैं । आकाश द्रव्य में भी लोक अलोक परिमाण स्कन्ध एक है । गुण पर्याय और प्रदेश अनेक हैं, तीनों अनन्त हैं। काल द्रव्य में वर्तना रूप गुण एक है । दूसरे गुण, पर्याय और समय अनेक तथा अनन्त हैं। क्योंकि भूतकाल के अनन्त समय हो गये, भविष्यत् के भी अनन्त समय होंगे । वर्तमान का समय एक ही रहता है । पुद्गल द्रव्य के परमाणु अनन्त हैं। एक एक परमाणु में अनन्त गुण और पर्याय हैं। किन्तु सर्व परमाणु में पुद्गलपना एक ही है । जीव अनन्त हैं । एक जीव में असंख्यात प्रदेश हैं और अनन्त गुण तथा पर्याय हैं। सर्व जीवों में जीवपना अर्थात् चेतना लक्षण एक समान है।
सब जीवों में समानता शंका-सर्व जीव समान हैं, यह कहना युक्ति संगत नहीं है, क्योंकि व्यवस्था भिन्न २ मालूम पड़ती है। जैसे एक जीव तो सिद्ध, परमात्मा, आनन्दमय है दूसरा संसारी कर्म के वश चारों गति में भ्रमण करता दिखाई देता है। फिर सब जीव समान कैसे कहे जा सकते हैं ? ___समाधान-निश्चय नय की अपेक्षा सर्व जीव सिद्ध के समान हैं। क्योंकि सब जीव कर्मों का क्षय करके सिद्ध हो सकते हैं । इस अपेक्षा से सब जीव सामान्य